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________________ पादपोपगमन मरण में हलन-चलन की भी छूट नहीं हैं। वृक्ष की भांति आसन में स्थिर रहा जाता है। संलेखना के प्रकार आगम एवं ग्रन्थों में संलेखना के तीन प्रकार बताये हैं-२८३ जघन्य. मध्यम और उत्कृष्ट। जघन्य संलेखना षट् मासिक होती है। मध्यम संलेखना वार्षिक और उत्कृष्ट संलेखना द्वादश वार्षिक होती है। जघन्य और मध्यम संलेखना में विगय का त्याग, आयंबिल और बीच-बीच में एकान्तर तप का विधान है। उत्कृष्ट संलेखना करने वाला तपाराधक साधक प्रथम के चार वर्षों में विविध प्रकार (उपवास, छट्ठ, अट्ठम, चार-पांच आदि) की तपस्यायें करता है। पारणे में शुद्ध आहार लेता है। दूसरे चार वर्षों में विविध प्रकार की खुली-खुली तपस्यायें करता है और पारने में विगय का त्याग करता है। नौवें और दशवें वर्ष में एकान्तरित तप करता है और पारने में आयंबिल करता है। ग्यारहवें वर्ष के प्रथम छह मास में बेले-बेले की तपस्या करता है और दूसरे छह मास में तेला (तीन), चोला (चार), पंचोला (पाँच) की तपस्या करता है। पारने में आयंबिल करता है। अंतिम वर्ष में कोटिसहित निरंतर आयंबिल करके शरीर और आयु बल दोनों को क्षीण करता है। भक्त प्रत्याख्यान संलेखना का उत्कृष्ट कालमान बारह वर्ष का है।२८४ ___ संलेखना में पंच शुद्धियाँ समाधि मरण करनेवाले साधक के लिये पाँच शुद्धियाँ आवश्यक होती हैं। वे इस प्रकार हैं-२८५ १) आलोचना शुद्धि, २) शय्या शुद्धि, ३) संस्तारक शुद्धि, ४) उपधि शुद्धि और ५) भक्तपान शुद्धि। संलेखना के पाँच अतिचार संलेखना विधि में पांच दोष पाये जाते हैं-२८६ इहलोकाशंसा-प्रयोग (इहलोक की इच्छा), परलोकाशंसा प्रयोग (परलोक की इच्छा), जीविताशंसा प्रयोग (जीने की इच्छा), मरणाशंसा प्रयोग (मरने की इच्छा) और कामभोगाशंसा प्रयोग (विगत सौख्य स्मृति और भावी सुख की कामना) इन पांच दोषों (अतिचारों) से रहित मृत्यु ही संलेखना की आराधना है। संलेखना स्वतंत्र साधना है - आत्महत्या नहीं संलेखना अंतिम समय की सर्वोत्कृष्ट स्वतंत्र साधना है। कतिपय विद्वान श्रमण एवं श्रावक की इस साधना पद्धति को आत्महत्या मानते हैं। आत्महत्या क्रोधवश की जाती - rrrrri जैन साधना पद्धति में ध्यान योग १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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