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और ७) विशोधि। इन सभी द्वारों का स्पष्टीकरण उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वें अध्ययन में मिलता है। दसविध समाचारी के नामों में भिन्नता मिलती है। दसविध समाचारी इस प्रकार है - २३८ १) आवश्यकी (किसी प्रयोजन से बाहर जाते समय 'आवस्सही' शब्द कहे), २) नैषेधिकी (प्रयोजन पूर्ण करके पुनः अपने स्थान पर लौटता है तब 'निसही' शब्द कहे), ३) आपृच्छना (आहार-विहारादि क्रिया गुरु को पूछकर करें), ४) प्रतिपृच्छना (पुनः पूछते समय ऐसा पूछे कि यदि आपकी आज्ञा हो तो यह काम करूं क्या?), ५) छन्दना (गवेषित अपने हिस्से में आये आहारादि के लिए दूसरों को निमंत्रित करे 'यदि आपके उपयोग में आये तो लीजिये'), ६) इच्छाकार (दुसरों से कोई काम करवाना हो तब विनम्रता से ऐसा कहे कि 'कृपया आपकी इच्छा हो तो यह कार्य करिये'), ७) मिथ्याकार (संयमाराधना में दोष लगने पर दृषित आत्मा की निंदा करे), ८) तथाकार (दोषों की आलोचना करने पर गुरु प्रायश्चित दे तो उसे प्रसन्नतापूर्वक 'तहत्ति' कहकर ग्रहण करे), ९) अभ्युत्थान (गुरु आने पर खड़ा रहे), १०) उपसंपदा (अपने गण में श्रुतज्ञान सम्पन्न न हो तो आचार्य की आज्ञा से दूसरे गण के बहुश्रुत आचार्य के सानिध्य में विनयपूर्वक श्रुत साहित्य का अध्ययन करना) इस प्रकार इस दस प्रकार की समाचारी द्वारा श्रमण आचार साधना पद्धति का विकास करता है। अन्तिम पदविभाग समाचारी का स्पष्टीकरण छेदसूत्र और कल्पसूत्र में उपलब्ध होता है।
४) षडावश्यक (भारतीय विभिन्न दर्शनों में दोषों की शुद्धि तथा गुणों की अभिवृद्धि हेतू 'संध्या' (हिन्दु), 'उपासना' (बौद्ध), 'रवीरदेह अवस्ता' (पारसी), 'प्रार्थना' (यहुदी-ईसाई), 'नमाज' (इस्लाम) आदि को जीवन का आवश्यक अंग माना गया है वैसे ही जैन धर्म में 'षडावश्यक' को माना है।)
__ आवश्यक शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ श्रमण और श्रावक के लिए नित्यप्रति सबेरे और श्याम को जो अवश्य किया जाता है उसे आवश्यक कहते हैं। प्राकृत भाषा में आपाश्रय शब्द को आवश्यक कहा गया है, क्योंकि जो गुणों की आधारभूमि है वह आवस्सय या आपाश्रय है। इन्द्रिय और कषाय आदि शत्रुओं को ज्ञानादि साधना द्वारा वश किया जाता है वह आवश्यक है। आवश्यक शब्द का अर्थ अनुरंजन भी है। । जो आत्मा को ज्ञानादि गुणों से आच्छादित (अनुरंजित) करे, वह आवश्यक है। २३९
आवश्यक के अनेक पर्यायवाची शब्द आगम एवं भाष्य में इसके लिये 'आवश्यक, अवश्य करणीय, ध्रुव, निग्रह, विशोधि, अध्ययनषट्क वर्ग, न्याय, आराधना और मार्ग ऐसे पर्यायवाची नाम मिलते हैं।२४०
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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