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गया। किन्तु कषाय की मन्दता के बिना पुनः पुनः संसार में भटकता ही रहा। परन्तु जब एक पुद्गल परावर्त काल जीव का संसार में भ्रमण शेष रहता है, तब उसमें भव्यत्व का प्रकाश प्राप्त होता है। बीज रूप अपुनर्बन्धक अवस्था को प्राप्त करने पर जीव प्रगति पथ पर चढ़ सकता है। इसका वर्णन आगे करेंगे। कालादिलब्धि
काललब्धि : कर्मयक्त कोई भी भव्य आत्मा के संसार परिभ्रमण का काल अधिक से अधिक अर्ध पुद्गल परावर्तन (परिवर्तन) प्रमाण शेष रहने पर प्रथम सम्यक्त्व के ग्रहण करने के योग्य होता है। इनसे अधिक काल के शेष रहने पर नहीं होता - यही एक काललब्धि है। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में स्पर्शनादि पाँच इन्द्रियाँ एवं कालादिलब्धियाँ भव्यात्माओं को सहायक होती हैं। इन दोनों के अभाव में भव्यत्व होने पर भी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं हो सकती। दूसरी काललब्धि का संबंध कर्म स्थिति से है। उत्कृष्ट स्थिति वाले कर्मों के शेष रहने पर या जघन्य स्थिति वाले कर्मों के शेष रहने पर प्रथम सम्यक्त्व का लाभ नहीं होता। सम्यक्त्व का लाभ तो, जिस जीव में बध्यमान कर्म समूह विशुद्ध परिणामों से अतः कोटिकोटिसागरोपमप्रमाणवाला होता है। पूर्व बद्ध कर्म जिसमें से संख्यात हजार कम अन्तः कोटाकोटी की स्थिति में आता है, उसको उपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त होने की योग्यता प्राप्त होती है। इस सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए पांच लब्धियों का होना आवश्यक होता है। पाँच लब्धियां इस प्रकार है : १) क्षयोपशमलब्धि २) विशुद्धि लब्धि ३) देशनालब्धि, ४) प्रायोग्यलब्धि और ५) करणलब्धि। इनमें से प्रथम की चार लब्धियाँ संसारी जीवों को अनेक बार होती हैं और यह भव्य और अभव्य दोनों को भी होती हैं। किन्तु अंतिम करणलब्धि भव्य को ही होती है। प्रथम की चार लब्धियों में सम्यक्त्व की प्राप्ति नियम से ही होती हो; ऐसा कोई नियम नहीं है। किन्तु करणलब्धि के प्राप्त होने पर ही भव्य जीव सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। अधः प्रवृत्तिकरण (यथाप्रवृत्तिकरण), अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण को जो भव्य जीवक्रम से करता है, उस प्रक्रिया का नाम करणलब्धि है। करणलब्धि के प्राप्त होने पर सम्यक्त्व प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त होती ही है। जो भव्य है, संज्ञी है, पर्याप्तक है और सर्व विशुद्ध है। वह प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करता ही है। यह तीसरी काललब्धि है।७५ करणलब्धि का विशेष वर्णन आगे करेंगे।
___ भव्य संज्ञी पर्याप्तकादि का स्वरूप :- जो मोक्ष को प्राप्त करते हैं या पाने की योग्यता रखते हैं अथवा जिनमें सम्यग्दर्शनादि भाव प्रगट होने की योग्यता हैं - वे भव्य हैं। भव्य जीवों में से कुछ ऐसे होते हैं, जो निकट काल में अति शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं। कुछ बहुत काल के बाद मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं; जो मोक्ष की
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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