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आहारक वर्गणा नहीं ली जा सकती, शेष औदारिकादि प्रकार से रूपी द्रव्यों को ग्रहण करते हुए एक जीव द्वारा समस्त लोकाकाश के पुद्गलों का स्पर्श करना पुद्गल परावर्तन कहलाता है।
पुद्गल परावर्तन के मुख्य चार भेद हैं -
(१) द्रव्य पुद्गल परावर्तन, (२) क्षेत्र पुद्गल परावर्तन, (३) काल पुद्गल परावर्तन और (४) भाव पुद्गल परावर्तन। इन चारों के भी बादर और सूक्ष्म यह दो-दो प्रकार होते हैं। इस प्रकार से पुद्गल परावर्तन के निम्नलिखित आठ भेद हैं। (१) बादर द्रव्य पुद्गल परावर्तन, (२) सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्तन, (३) बादर क्षेत्र पुद्गल परावर्तन, (४) सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल परावर्तन, (५) बादर काल पुद्गल परावर्तन, (६) सूक्ष्म काल पुद्गल परावर्तन, (७) बादर भाव पुद्गल परावर्तन, (८) सूक्ष्म भाव पुद्गल परावर्तन।
इन आठों का स्वरूप जितने काल में एक जीव समस्त लोक में रहने वाले समस्त परमाणुओं को औदारिक शरीर आदि सात वर्गणा रूप से ग्रहण करके छोड़ देता है, उतने काल को बादर द्रव्य पुद्गल परावर्तन कहते हैं और जितने काल में समस्त परमाणुओं को औदारिक शरीर आदि सात वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणा रूप से ग्रहण करके छोड़ देता है, उतने काल को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्तन कहते हैं।
__ कोई एक जीव भ्रमण करता हुआ अपने मरण के द्वारा लोकाकाश के समस्त प्रदेशों को क्रम से या बिना क्रम से जैसे बने वैसे जितने समय में स्पर्श कर लेता है, उतने काल को बादर क्षेत्र पुद्गल परावर्तन कहते हैं। कोई जीव भ्रमण करता करता आकाश के किसी एक प्रदेश में मरण करके पुनः उस प्रदेश के समीपवर्ती दूसरे प्रदेश में मरण करता है। पुनः उसके निकटवर्ती तीसरे प्रदेश में मरण करता है। इस प्रकार अनन्तर - अनन्तर - प्रदेश में मरण करते हुए जब समस्त लोकाकाश के प्रदेशों में मरण कर लेता है, तब वह सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल परावर्त कहलाता है। बादर और सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गल परावर्तन में इतना अन्तर है कि बादर में तो क्षेत्र के प्रदेशों में क्रम का विचार नहीं किया जाता है और सूक्ष्म में क्षेत्र-प्रदेश के क्रम का विचार होता है। सूक्ष्म में समस्त प्रदेशों में क्रम से ही मरण ग्रहण करना चाहिए। अक्रम से जिन प्रदेशों में मरण होता है उनकी गणना नहीं की जाती है।
जितने समय में एक जीव अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी रूप बीस कोटाकोटी सागरोपम के एक काल चक्र के प्रत्येक समय को क्रम या अक्रम से मरण द्वारा स्पर्श कर लेता है, उतने काल को बादर काल पुद्गल परावर्त कहते हैं और एक जीव किसी जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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