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________________ इस पर शुभचन्द्र की टीका है। अध्यात्मतत्त्वावलोक :- प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता न्यायविजयजी (वि. सं. १८ शती) हैं। इसमें आध्यात्मिक विषय वैराग्यप्रधान है। संसार की असारता, विषयों की निर्गुणता, भोगों की भयंकरता, काम की कुटिलता, शरीर की नश्वरता, इन्द्रियों की मादकता और चित्त की चपलता आदि विषयों को आठ प्रकरणों- आत्मजागृति, पूर्व सेवा, अष्टांगयोग, कषायजय, ध्यान सामग्री, ध्यान सिद्धि, योग श्रेणी और अन्तिम उद्धार, को स्पष्ट किया है। त्याग ही आध्यात्मिक चिकित्सा है। त्यागी ही ध्यान साधना से आत्मिक शान्ति को प्राप्त कर सकता है। अतः सब साधनाओं में ध्यान को ही श्रेष्ठ बताया है। सिद्धांतसार संग्रह :- प्रस्तुत ग्रन्थ नरेन्द्रसेनाचार्य विरचित है। इसमें बारह अध्याय हैं। उनमें से प्रथम तीन अध्याय में सम्यग्दर्शनादि का, चौथे में माया, मिथ्यात्व और निदान का, पांचवें में जीव, ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग का, छठे से आठवें तक क्रमशः अधोलोक, मध्यलोक, ऊर्ध्वलोक का, नौवें में आस्रव तथा बंध तत्त्व का, दसवें में निर्जरा का, ग्यारहवें में आगम कथित चारों ध्यानों का और बारहवें में अनुप्रेक्षाओं का वर्णन है। सम्पूर्ण ग्रन्थ ध्यान की प्रधानता लिये हुये है। श्रावकाचार संग्रह :- प्रस्तुत श्रावकाचार संग्रह पाँच भागों में विभाजित है। सभी का यही नाम है। विभिन्न लेखकों के नामानुसार श्रावकाचार बनाया गया है। उनमें मुख्यतः श्रावक का आचार, आगम कथित ध्यान और पदस्थादि चार ध्यान का विशेष वर्णन है। इन्हीं आगम और आगमेतर ग्रन्थों के आधार पर ही आगे के सभी अध्यायों पर विचार किया जायेगा। जैन परम्परा में २० वीं शतादी में अनेक सन्त हुए। उनमें से पूज्यपाद श्री तिलोकऋषिजी महाराज एक हैं। उन्होंने नौ वर्ष की उम्र में ही संसार माया छोड़कर संयम अंगीकार किया। प्रवजित होते ही आत्म साधना में जुड़ गये। उस समय ध्यान परंपरा प्रायः लुप्त सी हो रही थी। आगमकालीन ध्यान परंपरा को पुनः जागृत करने के लिए उन्होंने सरल मार्ग स्वीकारा। तत्कालीन सामाजिक और आध्यात्मिक परिस्थिति का ज्ञान करके ध्यान पद्धति को काव्यरचना, चित्रकला एवं चरित्र के माध्यम से लोगों के सामने रखा। चित्र को सामने रखने से ध्यान सहज हो सकता है। अतः इसी पद्धती को अपनाकर उन्होंने हस्त और पाद से कुछ आध्यात्मिक चित्र निकाले। उनमें से कुछ की झांकी नीचे दे रहे हैं - 'ज्ञानकुंजर' चित्र में हाथी के चित्र से जैन धर्म की मुख्य साधना पद्धतिसम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक चारित्र और तप - इन चारों की साधना पद्धति को अंकित ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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