________________
दम्भत्यागाधिकार, भवस्वरूपचिन्ताअधिकार, वैराग्यसंभवाधिकार, ममतात्यागाधिकार, समताधिकार, सदनुष्ठानाधिकार, मनः शुद्ध्यधिकार, सम्यक्त्वाधिकार, मिथ्यात्वत्यागाधिकार, योगाधिकार, ध्यानाधिकार, आत्मानुभवाधिकार ये अधिकार ध्यान से संबंधित हैं। स्वतंत्र ध्यानाधिकार वर्णन में आगम शैली के साथ ही साथ जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण और हरिभद्र के ग्रन्थों का आधार लिया है। इस छोटे से अधिकार में ध्यान की सम्पूर्ण प्रक्रिया स्पष्ट कर दी है।
गम्भीरविजयगणी ने (वि. सं. १९५२) इस पर टीका लिखी है, जो प्रकाशित है। इस पर 'टब्बा' भी लिखा गया है। इसके कर्ता वीर विजय है।
___ 'आध्यात्मोपनिषद्' चार अधिकारों में विभक्त हैं। उनकी पदसंख्या क्रमशः ७७+६५+४४+२३ हैं। शास्त्रयोगशुद्धि, ज्ञानयोगशुद्धि, क्रियायोगशुद्धि साम्ययोग शद्धि इन चार अधिकारों में ध्यान संबंधी विशेष वर्णन है। साम्ययोग ही श्रेष्ठ ध्यान है।
'ज्ञानसार' में विभिन्न विषयों को लेकर भिन्न-भिन्न रूप से २० अष्टकों में विचार किया है। उनमें से मोहाष्टक, शमाष्टक, इन्द्रियजयाष्टक, मौनाष्टक, विवेकाष्टक, कर्मविपाकाष्टक, भवोद्वेगाष्टक, परिग्रहाष्टक, योगाष्टक, ध्यानाष्टक, तपाष्टक आदि में ध्यान संबंधी विवेचन है। इनमें भी योगाष्टक और ध्यानाष्टक में क्रमशः कर्मयोग व ज्ञानयोग तथा ध्याता ध्येय ध्यान की एकता का विस्तृत विवरण है।
इस पर गंभीरविजयजीगणीकृत 'विवरण' है।
ध्यान दीपिका :- प्रस्तुत कृति देवचन्द्र (वि. सं. १७६६) की तत्कालीन गुजराती भाषा में है। इसमें छह खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में अनित्यादि १२ भावनाओं का विवरण है और दूसरे में सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय का, तीसरे में पांच समिति, तीन गुप्ति का, चौथे में ध्यान और ध्येय का, पांचवें में धर्मध्यान, शुक्लध्यान और पिण्डस्थादि चार ध्यानों एवं यंत्रों का तथा छठे खण्ड में स्यावाद का विस्तृत वर्णन दिया है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ ध्यानमूलक ही है।
योगप्रदीप :- प्रस्तुत कृति १४३ पद्यों में रचित है। इसमें मुख्यतः आत्मतत्त्व का विस्तृत विवेचन है। पतंजलि के अष्टांगयोगों का जैन दृष्टि से विवेचन किया है। इसके मूल ग्रन्थ कर्ता का नाम अज्ञात है। इस पर गुजराती में किसी की 'बालावबोध' टीका है।
स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा :- प्रस्तुत ग्रन्थ कार्तिककुमार का है। इसमें बारह भावनाओं का विस्तृत वर्णन है। लोकानुप्रेक्षा में धर्मध्यान के लोक संस्थान ध्यान का विस्तत वर्णन किया गया है और धर्मानप्रेक्ष में आगमकथित ध्यानयोग एवं पदस्थ पिण्डस्थादि चार ध्यान का विस्तृत वर्णन है। वर्तमान परिस्थिति को लक्षित करके नये ढंग से ध्यानयोग की प्रक्रिया प्रस्तुत की है। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
८९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org