SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मामृत:- प्रस्तुत कृति पं. आशाधर (वि. १२-१३ वीं शती) द्वारा दो भागों में विभक्त हैं। इन दोनो भागों को क्रमशः 'अनगार धर्मामृत' और 'सागार धर्मामृत' कहते हैं। पहले भाग में नौ अध्याय हैं जिनमें सम्पूर्ण श्रमणाचार का वर्णन है। दूसरे भाग में आठ अध्याय हैं। उसमें सम्पूर्ण श्रावकाचार का वर्णन है। दोनों भाग में ध्यान का उल्लेख किया गया है क्षीर -नीर न्याय की तरह। दोनों भागों पर पं. आशाधर ने 'ज्ञान दीपिका' नामक 'पंजिका टीका' लिखी है। इसके अतिरिक्त उनकी 'भव्यकुमुदचन्द्रिका' नामक दूसरी भी टीका है। अनगार धर्मामृत की स्वोपज्ञ टीका वि. सं. १३०० की रचना है और सागार धर्मामृत की स्वोपज्ञ टीका वि. सं. १२९६में लिखी गई हैं। गुणस्थान क्रमारोह :-यह कृति रत्नशेखरसूरि (वि. सं. १४४७) की है। इसमें आत्मा का आध्यात्मिक विकास क्रम चौदह गुणस्थान के द्वारा बताया है। साधक में ध्यान की योग्यता चतुर्थ गुणस्थान से प्रारंभ होती है। आगे के गुणस्थानों में क्रमशः ध्यान प्रक्रिया में विशेषतः विकास होता जाता है। अन्तिम अयोगीकेवली गुणस्थान में सम्पूर्ण कर्मों को ध्यान द्वारा क्षय करके मोक्ष प्राप्त किया जाता है। प्रस्तुत कृति पर भी 'स्वोपज्ञ वृत्ति' 'अवचूरि' एवं 'बालावबोध' आदि टीकाएँ हैं। अवचूरि टीका का कर्ता अज्ञात है और बालावबोध का कर्ता श्रीसार है। यह कृति शान्तिसूरिकृत 'धर्म रत्न प्रकरण' में से ली है। अध्यात्मककल्पद्रुम :- इसके प्रणेता 'सहस्रावधानी' मुनिसुन्दरसूरि हैं। यह पद्यात्मक है। इसमें सोलह अधिकार हैं। उनमें से समता, स्त्रीममत्वमोचन, अपत्यममत्वमोचन, धन ममत्वमोचन, देहममत्वमोचन, विषयप्रमाद त्याग, कषाय त्याग, मनोनिग्रह, धर्मशुद्धि, गुरुशुद्धि, यतिशिक्षा, मिथ्यात्वादिनिरोध, शुभवृत्ति, साम्यस्वरूप आदि विषय ध्यान से संबंधित हैं। प्रस्तुत कृति पर तीन विवरण हैं - १) 'अधिरोहिणी' (धनविजयगणी), २) * 'अध्यात्म कल्पकता' (रत्नसूरि) और ३) उपाध्याय विद्यासागर कृत टीका। उपाध्याय यशोविजयगणीकृत ग्रन्थ :- न्यायाचार्य महामहोपाध्याय यशोविजयगणी (वि. सं.) १७-१८ शती) की अनेक कृतियां हैं। उनमें अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद्, ज्ञानसार आदि ग्रन्थों में ध्यान संबंधी विशेष सामग्री है। ग्रन्थ के नाम से ही अध्यात्मिकता स्पष्ट होती है। अध्यात्मसार सात अध्यायों में विभक्त है। इन सात प्रबंधों में क्रमशः ४+३+४+३+३+२+२=२१अधिकार है। इसका श्लोक प्रमाण १३०० है तथा पद्य ९४९ हैं। इन २१ अधिकारों में से अध्यात्ममहात्म्याधिकार, अध्यात्मस्वरूपाधिकार, ८८ . ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy