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आत्मानुशासन : प्रस्तुत ग्रन्थ गुणभद्राचार्य (वि. ९-१० वीं शती) द्वारा रचित है। इसका श्लोक प्रमाण २६९ है। इसमें मुक्ति की साधना का विशेष वर्णन है। ध्यान का अति संक्षिप्त वर्णन है।
इस पर आचार्य प्रभाचन्द्र (वि. १३ वीं शती) द्वारा रचित संक्षिप्त संस्कृत टीका है, जो सोलापूर से प्रकाशित है।
तत्त्वसार : प्रस्तुत कृति देवसेनाचार्य (वि. १० वीं शती) द्वारा रचित है। तत्त्व का विविध प्रकार से वर्णन करके स्वगत और परगत रूप से क्रमशः निजात्मा और पंचपरमेष्टी का स्वरूप स्पष्ट किया है। पदस्थ ध्यान का विस्तृत वर्णन करके पुण्यात्माओं को पुण्य का बन्धन बताया है। स्वगत दो प्रकार के हैं- सविकल्प और अविकल्प। सविकल्प स्वगत आस्रवयुक्त है जब कि अविकल्प स्वगत आस्रवरहित है। इन्द्रियविषयों से विमुख होने पर मन की चंचलता का विच्छेद हो जाता है तब अपने स्वभाव में (स्वरूप में) निर्विकल्प अवस्था आती है। यह शुद्धावस्था ही ध्यान है। इसमें शुद्ध आत्म तत्त्व का ही ध्यान करने की प्रेरणा है। स्वद्रव्य और परद्रव्य के विवेचन में ज्ञानी अज्ञानी का स्वरूप स्पष्ट किया है।
भावसंग्रह : यह भी देवसेनाचार्य की कृति है। यह प्राकृत में है। इसमें ध्यान संबंधी निम्नलिखित विषयों का वर्णन है। मुक्त और संसारी जीवों का स्वरूप, औदायिकादि पाँच भावों का स्वरूप, चौदह गुणस्थान एवं जिनकल्पक और स्थविरकल्पक की साधना पद्धति। इन विषयों के अंतर्गत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट किया है।
गोम्मटसार : इसके रचयिता आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती (वि. ११ वीं शी) ये चामुण्डराय के समकालीन रहे हैं। इन्होंने षट्खंडागम का ही आधार लिया है। प्रस्तुत ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है। जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड । इसका गाथा प्रमाण १७०५ हैं।
जीवकाण्ड : इसमें गुणस्थान, जीव समास, १४ मार्गणा, उपयोग आदि का विस्तृत वर्णन हैं। मार्गणा के अन्तर्गत लेश्या का स्वरूप स्पष्ट किया है। इस विभाग में ७३३ गाथाएं हैं। ध्यान कौन कर सकता है? जीवों के भेद एवं स्वरूप का विशेष वर्णन करके यही स्पष्ट किया है कि सम्यग्दृष्टि आत्मा ही ध्यान के अधिकारी हैं।
कर्मकाण्ड : इसमें कर्म का विस्तृत वर्णन है। नौ अधिकारों में ९७२ गाथाएं हैं। ध्यान द्वारा ही कर्मक्षय किया जा सकता है। अतः इसमें कर्म का अति विस्तृत वर्णन है।
ज्ञानार्णव : प्रस्तुत कृति को योगार्णव अथवा योगप्रदीप भी कहते हैं। यह शुभचन्द्राचार्य की रचना है। इसमें ४२ वर्ग और २०७७ श्लोक हैं। हेमचन्द्राचार्यकृत
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___ ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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