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पांच सूत्रों में विभाजित किया गया। नामानुसार ही प्रत्येक सूत्र में वर्णन किया गया है। उसके अन्दर योग को ऐसा समाविष्ट कर दिया है कि उसे उन सूत्रों से अलग नहीं कर
सकते।
शुद्ध धर्म की प्राप्ति पाप नाश से ही होती है। पाप कर्म का नाश तथा भव्यतादि भाव से है। उसके (तथा भव्यतादि) परिपाक के साधन १) चहु शरणा, २) दुष्कृतगर्दा
और सुकृत का सेवन, (अनुमोदन) है। इन साधनों के द्वारा ही साधक आत्मशुद्धी करके धर्म का पालन करता है। धर्म के अन्तर्गत श्रावक और यति के मूलगुण और उत्तरगुणों का वर्णन करके सम्यग्दर्शनादि की आराधना द्वारा ध्यान का वर्णन पंच सूत्रों में दुग्धजल की तरह समाविष्ट कर दिया है।
प्रस्तुत कृति चिरन्तनाचार्य की है।
इस प्रकार हरिभद्रसूरि ने अपने योगप्रधान ग्रन्थों द्वारा मौलिक चिन्तन से नये वर्गीकरण, अपूर्व पारिभाषिक शद्वावली (अचरमावर्त-चरमावर्त, भवानन्दी, आत्मानन्दी, कृष्णपाक्षिक-शुक्ल पाक्षिक, अपुनर्बन्धकादि) का तथा जैन परम्परागत योगात्मक विचारों का नये पद्धति से प्रतिपादन किया है। इनके ग्रन्थों में योग का विस्तृत स्वरूप सर्वांगों द्वारा स्पष्ट होता है।
उपमितिभवप्रपंचा कथा :- प्रस्तुत ग्रन्थ सिद्धर्षिगणि (वि. सं. ९६२) रचित आठ प्रस्तावों में (भागों में) विभाजित है। इसके पूर्वार्ध (प्रथम भाग) और उत्तरार्ध (दूसरा भाग) ऐसे दो विभाग हैं। इसमें द्रमक (भिखारी) के रूपक द्वारा समस्त संसारी जीवों का स्वरूप बताया है। दूसरे में कर्म के स्वरूप और उससे छूटने के लिये सदागमगुरु की शरण को श्रेष्ठ बताया है। निगोद से लेकर तिर्यचपंचेन्द्रिय तक के परिभ्रमण की कथा को रूपक द्वारा तीसरे प्रस्ताव में स्पष्ट किया है। और चतुर्थ प्रस्ताव में मोहराजा का अस्तित्व और संसार परिभ्रमणा का कारण मोह का रूपकों द्वारा वर्णन किया है। पांचवें प्रस्ताव से उत्तरार्ध शुरू होता है। शेष प्रस्तावों में रूपकों द्वारा आध्यात्मिक विकास क्रम का वर्णन मिलता है। सद्गुरु वैद्य की शरण से ही कर्म रोग दूर हो सकता है। उसके लिये ध्यानयोग की औषधि महा रामबाण दवा है। समस्त द्वादशांगी का सार ध्यानयोग को ही बताया है। संसार से मुक्ति ध्यान द्वारा ही हो सकती है। यह ग्रन्थ सम्पूर्ण रूपकों द्वारा ही निर्मित है। इसकी यही विशेषता है कि नानाविध रूपकों द्वारा संसार का स्वरूप समझाकर अन्त ध्यानयोग का ही द्वादशांगी (आगम वाणी) का सार कहा है।
प्रस्तुत ग्रन्थ शाह नगीनभाई छेलामाई जव्हेरी ४२६ जव्हेरी बाजार तथा दूसरा मुनि चंद्रशेखरविजय (सम्पादक) द्वारा 'कमल प्रकाशन' अहमदाबाद से प्रकाशित है। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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