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________________ मरूदेवी की भांति सहज भाव से होने वाला ध्यान भवनयोग है और उपयोगपूर्वक किया जाने वाला योग (ध्यान) करणयोग है। प्रस्तुत कृति में सम्पूर्ण ध्यान का ही वर्णन है। पद्म पुराण :- प्रस्तुत कृति के कर्ता रविषेण (वि. सं. ७३३ शती) है। इसमें प्रमुखतः पुरुषोत्तम रामचन्द्र का वर्णन है। १२३ पों में वर्णन करके ध्यान का भी स्वरूप स्पष्ट किया है। परन्तु वह संक्षिप्त है। हरिवंश पुराण :- (यह हरिभद्र के बाद लिखना है किन्तु पहले लिखा गया) इसके कर्ता जिनसेनाचार्य हैं, परन्तु महापुराण के कर्ता से भिन्न है। इसमें जैन वाङ्मय के विविध विषयों का षट्षष्टितम (६६) सर्गों में विभाजन किया है। बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ भगवान का चरित्र मुख्य रूप से स्पष्ट किया है और बीच में प्रसंगानुरूप अन्य कथानक भी दिये हैं। श्रीकृष्ण और राम के चरित्र के साथ पाण्डवों, कौरवों एवं कृष्ण का पुत्र प्रद्युम्न का भी चरित्र वर्णित है। भगवान महावीर के वर्णन के साथ तीनों लोक का वर्णन विस्तार के साथ वर्णित किया है। यह धर्मध्यान का अन्तिम भेद है। इसके अतिरिक्त अपध्यान, अपायविचय आदि शब्द के प्रयोग से शुभाशुभ ध्यान का वर्णन किया है। महापुराण :- प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता पुष्पदन्त माने जाते हैं। इसे दो भागों में (पूर्वार्ध और उत्तरार्ध) विभाजित किया गया है। यों तो यह तीन भागों में विभाजित है। तीसरे भाग में अजितनाथ आदि का वर्णन है। इसमें त्रेसठ शलाका महापुरुषों (२४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलदेव) का वर्णन है। इसे सठ-शलाका पुरुष पुराण भी कहते हैं। इसके प्रथम भाग में ऋषभदेव का चरित्र है, इसे आदि पुराण कहा जाता है और शेष भाग को उत्तर पुराण कहा जाता है। आदि पुराण में सैंतालीस पर्व है। जिनमें से आदि तेंतालीस पर्व जिनसेन रचित है और पुष्पदन्त के आदि पुराण में सैंतीस सन्धियां हैं। सभी सन्धियों में विभिन्न विषयों का प्रतिपादन है। उनमें से ध्यान संबंधी निम्नलिखित सन्धियाँ हैं- द्वितीय सन्धि में काल द्रव्य का विस्तृत वर्णन है। सातवीं सन्धि में अनुप्रेक्षाओं का कथन है। आठवीं सन्धि में ऋषभदेव का कथन है। नौंवीं सन्धि में कायोत्सर्ग का उल्लेख है। अठारहवीं सन्धि में बाहुबलि और भरत का कथन है। बाहुबलि के आत्म चिन्तन का स्वरूप स्पष्ट करते हुए ध्यान का उल्लेख किया है। स्पष्टतः ध्यान का उल्लेख नहीं है फिर भी अप्रत्यक्षतः ध्यान का ही स्वरूप स्पष्ट किया जा रहा है। पूर्वार्ध में १८ सन्धियाँ हैं। ऋषभदेव ने 'बाह्मण' वर्ण की स्थापना के अनुसार तीन वर्ण की स्थापना की - क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रा जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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