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इस पर हरिभद्रीय टीका के अतिरिक्त टिप्पण भी है। इस पर एक अज्ञाकर्तृक टीका भी है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में आगम में कथित ध्यान विषयक विभिन्न सामग्री को एक स्थान पर रखा है। यह ध्यान का श्रेष्ठ ग्रन्थ है।
ध्यान -विचार :- इस ग्रन्थ के कर्ता अज्ञात हैं। इसकी हस्तलिखित प्रति, पाटन के श्री हेमचन्द्राचार्य - ज्ञानमन्दिर के भंडार में डा. नं. ५० प्र. न. ९९३ में 'ध्यान - विचार' नामक यह लघु ग्रन्थ प्राप्त होता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ 'नमस्कार स्वाध्याय' (प्राकृतविभाग) नामक ग्रन्थ में से लिया गया है। यह स्वतंत्र रूप से प्रकाशित नहीं है। इसमें ध्यान के ४, ४२, ३६८ भेद बताये गये हैं। यथा ध्यान मार्ग के चौबीस प्रकारों को दो भागों में विभाजित किया है -
१) ध्यान, २) शून्य, ३) कला, ४) ज्योति, ५) बिन्दु, ६) नाद, ७) तारा, ८) लय, ९) लव, १०) मात्रा, ११) पद और १२) सिद्धी । इन्ही बारह नामों के पहले 'परम' शब्द लगाने से दूसरे बारह भेद हो जाते हैं। दोनों नामों का जोड़ लगाने पर कुल ध्यान के २४ भेद होते हैं। इन चौबीस प्रकारों के स्वरूप को समझाते हुए शून्य के द्रव्य शून्य और भाव शून्य ऐसे दो भेद करके द्रव्य शून्य के बारह प्रभेद अवतरण द्वारा गिनाये हैं। यथा क्षिप्त, चित्त, दीप्त इत्यादि । शेष 'कला' से लेकर 'सिद्धी' तक - सभी के द्रव्य
और भाव से दो-दो प्रकार किये हैं। भाव कला में पुष्पमित्र का दृष्टान्त दिया है। परम बिन्दु के स्पष्टीकरण में ११ गुणश्रेणी गिनाई है। द्रव्य लय अर्थात वज्रलेप इत्यादि द्रव्य वस्तुओं का संश्लेष होता है यह भी बताया है।
ध्यान के चौबीस प्रकारों को करण के ९६ प्रकारों से गुणन करने पर २३०४ होते हैं। इसे ९६ करण योग से गिनने पर २, २१, १८४ भेद होते हैं। इसी प्रकार उपर्युक्त २३०४ को भवनयोग के ९६ प्रकारों से गुणन करने पर २, २१, १८४ प्रकार होते हैं। करणयोग और भवनयोग इन दोनों की जोड़ करने से ध्यान के ४,४२,३६८ भेद होते हैं।
परम लव से याने उपशम श्रेणी और श्रेणी का बोध कराया है। परम मात्रा में चौबीस वलयों द्वारा वेष्टित आत्मा का ध्यान करने को कहा है। भवनयोगादि के योग, वीर्य, आदि आठ प्रकार, उन सबके तीन-तीन प्रकार और उनके प्रणिधान आदि चार-चार कुल ९६ भेद हुये। चार प्रणिधान को क्रमशः प्रसन्नचंद्र, भरतेश्वर, दमदन्त और पुष्पभूति के दृष्टान्तों द्वारा भवन और करणयोग का स्पष्टीकरण किया है। इसके अतिरिक्त इसमें छद्मस्थ के ४, ४२, ३६८ प्रकार और २९० आलम्बनों का भी निर्देश किया है।
ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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