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है। पूज्यपादाचार्य के कथनानुसार दर्शनमोहनीय कर्म के प्रबल उदयावलि के कारण जीव को अपने यथार्थ स्वरूप का बोध नहीं होता। यथार्थ स्वरूप का बोध रागादि के दूर हटे बिना नहीं हो सकता। इसके लिए शुद्ध आत्मस्वरूप का चिन्तन ही श्रेष्ठ उपाय है और यही ध्यान का स्वरूप है।
इस पर पं. आशाधर (वि. १३ वीं शती) की टीका है।
परमात्म प्रकाश :- प्रस्तुत ग्रन्थ योगीन्दु (जोइन्दु वि. ६-७ वीं शती) का है। इसमें ३४५ दोहे हैं। यह दो अधिकार में विभक्त है, जिनकी पद्य संख्या क्रमशः १२३+२१४ = ३३७ है। इसमें शुद्ध आत्मस्वरूप का ही विश्लेषण है। कुंदकुंदाचार्य और आचार्य पूज्यपाद इन दोनों के विषयों को ही लेकर इसमें विशेष स्पष्टीकरण किया है। आत्मा के बहिरात्मा-अन्तरात्मा और परमात्मा ऐसे तीन भेद किये गये हैं। अन्तरात्मा दशा धर्मध्यान की अवस्था है। धर्मध्यान की साधना से ही शुक्लध्यान पर आरोहण किया जा सकता है तभी परमात्मदशा का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। यही ध्यान का सच्चा स्वरूप है।
इस पर प्रभाचन्द्र एवं अन्य आचार्यों की टीकाएं हैं किन्तु पहले आचार्य की टीका प्रकाशित है। पद्मनन्दी ने भी 'समान नामक कृति' इस ग्रन्थ पर संस्कृत में लिखी है जिसका श्लोकप्रमाण १३०० है।
योगसार :- यह भी योगीन्दु की कृति है। इसमें १०८ दोहे हैं, जो सभी अध्यात्मविषयक ही हैं। इसमें परमात्म प्रकाश के विषय का ही प्रतिपादन है। इसमें इतनी विशेषता है कि आत्मा के निज स्वरूप को प्राप्त करने का उपाय ध्यान ही बताया है। आत्मस्वरूप का सतत चिन्तन ही ध्यान है।
इस पर संस्कृत में दो टीकाएँ लिखी गई हैं। प्रथम टीका के कर्ता अमरकीर्ति के शिष्य इन्द्रनन्दी है और दूसरी टीका का कर्ता अज्ञात है।
झाणज्झयण (झाणसय) :- प्रस्तुत कृति जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण की है। इसका संस्कृत नाम ध्यानाध्ययन और ध्यानशत है। इस पर हरिभद्र की टीका है। उन्होंने इसे ध्यान शतक की संज्ञा दी है। इसमें आगमनकालीन ध्यान का ही स्वरूप विस्तार से स्पष्ट किया है। आर्तध्यान-रौद्रध्यान का स्वरूप, लक्षण, लेश्या, स्वामी, भेद, लिंग और गति आदि द्वारा विशेष रूप से इन दो अशुभ ध्यानों का वर्णन किया है। शुभध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान के बारह द्वार - (भावना, उचित देश या स्थान, उचित काल, उचित आसन, आलम्बन, ध्यान का क्रम, ध्यान का विषय, ध्याता अनुप्रेक्षा, लेश्या, लिंग और फल) बताये हैं। इन्हीं के द्वारा ध्यान का सम्पूर्ण स्वरूप स्पष्ट किया है। यह ध्यानमूलक ही ग्रन्थ है।
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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