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________________ धनादर्पण' नामक टीका रची गई है। इसके अतिरिक्त आचार्य अमितगति (वि. ११ वीं शतादी) द्वारा पद्यानुवाद भी किया गया है। टीकाओं में ध्यान का स्वरूप आगम के अनुसार ही वर्णित है। आचार्य उमास्वातिकृत ग्रन्थ :- उमास्वाति दोनों ही सम्प्रदाय (श्वेताम्बर व दिगम्बर) के प्रसिद्ध ग्रन्थकार हैं और सूत्रशैली के प्रथम प्रणेता हैं। इनका कालमान विक्रम की दुसरी-तीसरी या चौथी शतादी के बीच माना जाता है। इनके ध्यान संबंधी निम्नलिखित ग्रन्थ हैं - तत्वार्थ सूत्र :- प्रस्तुत ग्रन्थ दोनों सम्प्रदाय में माननीय है। श्वेताम्बर परम्परा में यह तत्त्वार्थधिगमसूत्र के नाम से प्रसिद्ध है। यह दश अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय भूमिका रूप है जिसमें ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। साथ ही साथ सम्यग्दर्शन का भी स्वरूप स्ष्ट कर दिया है। प्रथम अध्याय में तत्त्वों का दिग्दर्शन करके दूसरे से लेकर चौथे अध्याय तक जीव तत्त्व का विश्लेषणात्मक दृष्टि से संक्षिप्त वर्णन किया है। पांचवें अध्याय में अजीव तत्त्व का वर्णन है। छठे अध्याय व सातवें अध्याय में आस्रव तत्त्व का, आठवें में बंध तत्त्व का, नौवें में संवर तत्त्व का और दसवें में मोक्ष तत्त्व का वर्णन है। इन सभी अध्यायों में ध्यान को इस प्रकार जड़ दिया है कि उनसे पृथक् करके बताना कठिन है। नौवें अध्याय में ध्यान का विस्तृत वर्णन है। ध्यान का फल संवर और निर्जरा है और निर्जरा का फल मोक्ष है। जीव ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की साधना से मोक्ष प्राप्त करता है। ये ही तीनों मोक्ष मार्ग हैं। ध्यान संबंधी यह उत्कृष्ट ग्रन्थ है। प्रस्तुत ग्रन्थ पर सर्वार्थसिद्धि (आ. पूज्यपाद) और तत्त्वार्थवार्तिक (आ. अकलंक देव) नामक दो टीकाएं हैं। इनमें भी ध्यान का स्वरूप आगम शैली से ही विस्तृत रूप से स्पष्ट किया है। तत्त्वार्थाधिगम- भाष्य :- प्रस्तुत स्वोपज्ञ भाष्य तत्त्वार्थ सूत्र पर ही रचा गया है। मोक्ष में साधनभूत ज्ञान, ज्ञेय और चारित्र का (अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र) विस्तृत वर्णन करके ध्यानयोग का संवर अध्याय में विस्तार से वर्णन किया है। प्रशमरति -प्रकरण :- प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्यानसंबंधी कषाय, रागादि भाव, आठ कर्म, पंचेन्द्रियविषय, आठ मद, आचार, भावना, नौ तत्त्व, उपयोग,पाँच भाव, छह द्रव्य, चारित्र, शीलांग, ध्यान, अपक श्रेणी, समुद्घात, योगनिरोध, मोक्षगमन क्रिया और फल आदि २२ अधिकारों से विभिन्न विषयों का वर्णन किया गया है। इस पर हरिभद्रीय टीका है, जिसका श्लोकप्रमाण १८०० है। प्रवचनसारोद्धार :- प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता नेमिचन्द्रसूरि हैं। उन्होंने इस ग्रन्थ में जैन जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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