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'समय सार' ग्रन्थ में जीवादि नौ तत्त्वों पर शुद्ध निश्चय नय से विचार किया गया है। जीव के स्व समय और परसमय की विचारणा में भूतार्थ (शुद्धनय) और अभूतार्थ (अशुद्धनय) का निश्चय और व्यवहार नय के माध्यम से ध्यान के स्वरूप का वर्णन किया है। शुद्धात्मा का स्वरूप ही ध्यान का लक्ष्य है।
प्रस्तुत ग्रन्थपर 'आत्मख्याति', 'तात्पर्यवृत्ति', 'आत्मख्यातिभाषावचनिका' ये तीन टीकाएं हैं।
'अष्टपाहुड' ग्रन्थ में दंसण पाहुड. चारित्तपाहुड, सुत्तपाहुड, बोध पाहुड,भाव पाहुड, मोक्ष पाहुड, लिंग पाहुड और सील पाहुड क्रमशः इनके नामानुसार ही विषयों का दिग्दर्शन किया गया है। चारित्रसम्पन्न आत्मा को ही ध्यान का अधिकारी माना गया है। कहीं-कहीं विद्वानों का कथन है कि कुंदकुंदाचार्य ने ८४ पाहुड लिखे थे। परंतु वर्तमान में उपरोक्त आठ ही पाहुड उपलब्ध हैं। इसमें आगमकालीन साधना पद्धति का मौलिक चिन्तन करके मनोवैज्ञानिक ढंग से विचार किया है।
द्वादशानुप्रेक्षा' ग्रन्थ में अनित्यादि बारह भावनाओं का विचार किया गया है। भावना ध्यानयोग की प्रथम सीढ़ी है। अन्तिम चार गाथाओं में अनुप्रेक्षाओं का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इसमें ९१ गाथाएं हैं। भावना के बिना ध्यानावस्था जीवन में आ नहीं सकती। अतः कुंदकुंदाचार्य ने ध्यान के स्वरूप को स्पष्ट करने में भावना पर अधिक जोर दिया है। अन्तिम दो ग्रन्थ कुंदकुंद भारती में मिलते हैं। - कुंदकुंदाचार्य ने अपने मौलिक चिन्तन के रूप में ध्यानयोग की प्रक्रिया को शास्त्रीय
और आध्यात्मिक पद्धती से प्रस्तुत की है। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के द्वारा शास्त्रीय पद्धति और निश्चय और व्यवहार के द्वारा आध्यात्मिक पद्धति को स्पष्ट किया है। यही ध्यान संबंधी इनका मौलिक चिन्तन है।
भगवती आराधना :- प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता आचार्य शिवार्य हैं। इनका काल निश्चित नहीं है फिर भी ग्रन्थ का विषय और उसकी विवेचन पद्धती से प्रतीत होता है कि इसका रचनाकाल दूसरी-तीसरी शतादी होना चाहिए। इसके दो भाग हैं। इन दोनों भागों में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र और तप का विवेचन है। तप के अन्तर्गत ही आगम कथित ध्यान का स्वरूप स्पष्ट किया है। रत्नत्रय का आराधक ही ध्यान कर सकता है। इसीलिए चतुर्थ अंग 'तप' में ध्यान का स्वरूप बताया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ पर अपराजितसूरि (अनुमानतः वि. ९ वीं शतादी के पूर्व) के द्वारा 'विजयोदया' नामक टीका और पं. आशाधर (वि. १३ वीं शताबी) द्वारा 'मूलारा
ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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