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________________ नन्दीवृत्ति में नन्दीचूर्णि का ही सारा वर्णन है। ज्ञान के अन्तर्गत ही ध्यान का अप्रत्यक्ष रूप से वर्णन किया गया है। अनुयोगद्वार वृत्ति :- इसमें अनुयोगद्वार चूर्णि का ही विशेष वर्णन है। 'आवश्यक' शद की व्याख्या नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से की गई है। दस आनुपूर्वी का वर्णन करते हुए शरीर पंचक एवं विविध अंगुलों के वर्णन के साथ भाव प्रमाण के अन्तर्गत प्रत्यक्ष, अनुमान, औपम्य, आगम, दर्शन, चारित्र, नय और संख्या आदि का वर्णन किया है। ज्ञान नय और क्रिया नय के स्वरूप द्वारा ज्ञान और क्रिया की उपयोगिता सिद्ध की है। इसी में ध्यान का स्वरूप अप्रत्यक्ष रूप से बताया गया है। विशेषावश्यक भाष्य-विवरण :- प्रस्तुत टीका कोट्याचार्य की है। इसमें जिनभद्र-कृत विशेषावश्यक भाष्य का ही व्याख्यान किया गया है। इसकी विशेषता इतनी ही है कि कथानक के द्वारा ध्यान का संक्षिप्त वर्णन है। शीलांकाचार्यकृत विवरण :- ये शीलांक, शीलाचार्य एवं तत्वादित्य के नाम से प्रसिद्ध हैं।५२ इन्होंने नौ अंगों पर टीकाएँ लिखी थी, किन्तु वर्तमान में आचारांग और सूत्रकृतांग ये दो ही टीकाएं उपलब्ध हैं। इनका कालमान विक्रम की नौवीं दशवीं शतादी माना जाता है। आचारांग विवरण मूल सूत्र और नियुक्ति पर ही लिखी गई है। विवरणकार ने विषय को शदार्थ तक ही सीमित न रखकर प्रत्येक विषय पर विस्तार से वर्णन किया है। श्रमणाचार का विस्तृत वर्णन करके तपाचार के अन्तर्गत ध्यान की विधि स्पष्ट की है। इस विवरण की यह विशेषता रही है कि सर्वप्रथम सूत्रों का मूलच्छेद करते हुए पदों का अर्थ स्पष्ट किया है। भगवान महावीर की सम्पूर्ण साधना ध्यानमय ही थी। इसका वर्णन प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौवें अध्याय में है। इस टीका का ग्रन्थमान १२००० श्लोकप्रमाण है। इनकी दूसरी टीका सूत्रकृतांग भी मूल और नियुक्ति पर ही आधारित है। इसमें विभिन्न विषयों का प्रतिपादन किया गया है और ध्यान योग का विशेष स्वरूप स्पष्ट किया उत्तराध्ययन टीका :- प्रस्तुत टीका वादिवेतालशान्तिसूरि की है। ये विक्रम की ग्यारहवी शतादी के हैं। इन्होंने 'तिलकमंजरी' पर भी टीका लिखी है जो पाटन के भंडारों में आज भी विद्यमान है। जीवविचार प्रकरण और चैत्यवन्दन-महाभाष्य भी इन्हीं का ही प्रस्तुत टीका का नाम शिष्यहितवृत्ति है। यह 'पाइअ-टीका' के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें मूल सूत्र और नियुक्ति दोनों का व्याख्यान है। प्रस्तुत टीका में तीर्थंकर के वचनों का ७० ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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