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________________ षटक, कायषट्क, वाक् शुद्धि, इन्द्रियादि प्रणिधियों का, लोकोपचार विनय, अर्थविनय, काम विनय, भयविनय, मोक्ष विनय आदि दस अध्यायों में इन विभिन्न विषयों पर एकएक पद की व्याख्या निक्षेप पद्धति से की है। इन सभी विषयों का ध्यान से विशेष संबंध रहा है। अंतिम दो चूलिकाओं में क्रमशः भिक्षु के गुण एवं रति अरति आदि अठारह दोषों का विवरण है, जो ध्यान कालीन अवस्था में बाधक है। प्रस्तुत चूर्णि रतलाम से प्रकाशित है।४४ उत्तराध्ययन चूर्णि :- प्रस्तुत चूर्णि नियुक्त्यनुसारी एवं संस्कृत मिश्रित प्राकृतमय है। इसमें संयोग, पुद्गलबंध, संस्थान, विनय, अनुशासन, परीषह, समाधि, धर्मविघ्न, मरण, निर्ग्रन्थपंचक, भय सप्तक, ज्ञानक्रियैकान्त आदि विभिन्न विषयों पर उदाहरणसहित विवेचन है। स्त्री परीषह पर विशेष वर्णन है। शेष सब दशवैकालिक चूर्णि के समान वर्णन यह भी १९३३ में रतलाम से प्रकाशित है।४५ आचारांगचूर्णि :- प्रस्तुत चूर्णि आचारांग नियुक्ति का ही विवेचन है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में अंग, आचार, ब्रह्म, वर्ण, आचरण, शस्त्र, परिज्ञा, संज्ञा, दिक्, सम्यक्त्व, योनि, कर्म, पृथ्व्यादि छकाय, लोक शब्द, विजय शब्द, गुणस्थान, परिताप, विहार, रति, अरति, लोभ, जुगुप्सा, जातिस्मरण ज्ञान, एषणा, देशना, बंध-मोक्ष, अचेलत्व, मरण, संलेखना आदि विभिन्न विषयों का वर्णन है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में श्रमणाचार से संबंधित ईर्या, भाषा आदि एवं भावना का वर्णन है। ये सब विषय ध्यान से संबंधित ही हैं। प्रस्तुत चूणि १९४१ में रतलाम से प्रकाशित है।४६ सूत्रकृतांग चूर्णि :- इसमें ध्यान योग से संबंधित आलोचना, परिग्रह, ममता, लोकविचार, वीर्य निरूपण, समाधि, आहारचर्या, वनस्पति के भेद, पृथ्वीकायादि के भेद आदि विषयों का वर्णन है। १९४१ में यह चूर्णि रतलाम से प्रकाशित है।४७ जीतकल्प भाष्य-बृहचूर्णि :- प्रस्तुत चूर्णि सिद्धसेनसूरि की कृति है, जो कि अहमदाबाद से प्रकाशित है। और भी एक अन्य आचार्य की कृति मानी जाती है।४८ यह सम्पूर्ण प्राकृत में है। इसमें आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीतव्यवहार का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। दस प्रकार के प्रायश्चित्त, नौ प्रकार के व्यवहार तथा मूलगुण और उत्तरगुण आदि विषयों का वर्णन है जिसका ध्यान से सीधा संबंध है। दशवैकालिक चूर्णि :- पहले बताई गई दशवैकालिक चूर्णि जिनदासगणि की है जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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