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इसके अतिरिक्त इसमें भगवान् महावीर के भावों का, ऋषभदेव का सम्पूर्ण जीवन चरित्र, वज्रस्वामी और आर्यरक्षित का चरित्र, आठ निह्नव आदि विभिन्न विषयों पर वर्णन मिलता है।
ध्यान साधना में बाधक राग, स्नेह, कषाय को क्रमशः अरहन्नक, धर्मरुचि और जमदग्न्यादि के दृष्टांत द्वारा स्पष्ट किया है। इन्हें कर्म क्षय की प्रक्रिया से ही दूर किया जा सकता है। उसके लिये समुद्घात, योगनिरोध, अयोगी केवली गुणस्थान एवं तीर्थंकर आदि पदों का विधान है। ये सब ध्यान से संबंधित हैं।
द्वितीय अध्याय चतुर्विंशतिस्तव में लोक, धर्म और तीर्थंकर आदि पदों का निक्षेप पद्धति से व्याख्यान किया है। तृतीय 'वन्दना' अध्याय में चितिकर्म, कृतिकर्म, पूजाकर्म, विनय कर्म आदि दृष्टान्त द्वारा विश्लेषण किया है। चतुर्थ प्रतिक्रमण अध्याय में प्रतिक्रमण का शद्वार्थ एवं प्रतिक्रमक, प्रतिक्रमण और प्रतिक्रांतव्य का व्याख्यान किया है, साथ ही साथ प्रतिचरणा, परिहरणा, वारणा, निवृत्ति, निंदा, गर्हा, शुद्धि और आलोचना आदि का वर्णन कथानक द्वारा किया है। प्रतिक्रमण में कायिक, वाचिक और मानसिक में लगनेवाले अतिचार, ईर्यापथिकी विराधना, भिक्षाचर्या, स्वाध्याय आदि में लगनेवाले दोषों का भी वर्णन है।
ध्यान के चार भेद, पाँच समिति, पंच महाव्रत, उपासक ग्यारह पडिमा एवं भिक्षु की बारह पडिमा के साथ पन्द्रह परमाधामी देव, बीस असमाधि दोष, इक्कीस शबल दोष, बाईस परीषह, तीस मोहनीय स्थान का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। ये सभी ध्यान संबंधित हैं।
पंचम अध्याय कायोत्सर्ग में व्रण चिकित्सा के दो प्रकार किये हैं - द्रव्यव्रण और भाव व्रणा द्रव्यव्रण में औषधादि से चिकित्सा है और भावव्रण में प्राचश्चित्त से। कायोत्सर्ग भी प्रशस्त और अप्रशस्त रूप से दो प्रकार का है। उच्छितादि नौ प्रकार भी स्पष्ट किए हैं। अन्तिम प्रत्याख्यान अध्याय में प्रत्याख्यान के भेद तथा श्रावक धर्म का वर्णन है।
प्रस्तुत चूर्णि पूर्व भाग और उत्तर भाग रतलाम से प्रकाशित है।४३
दशवैकालिक चूर्णि :- प्रस्तुत चूर्णि में नियुक्ति का ही अनुकरण किया गया है। द्रुमपुष्पिका आदि दस अध्याय और दो चूलिकायें - कुल बारह अध्याय में क्रमशः द्रुम, धर्म, शीलांग सहस्र, आचार-पंचाचार, जीव, अजीव, चारित्र धर्म, यतना, उपदेश, धर्मफल, साधु के उत्तर गुण-पिण्ड स्वरूप, भक्तपानैषणा, गमन विधि, गोचर विधि, पानक विधि, परिष्ठापनविधि, भोजन विधि, आलोचना विधि, धर्म, अर्थ, काम, व्रत
ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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