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________________ सभी नियुक्तियों पर भाष्य भी नहीं लिखे गये। निम्नलिखित आगमनिर्युक्ति पर ही भाष्य लिखे गये हैं- (१) आवश्यक (२) दशवैकालिक (३) उत्तराध्ययन (४) बृहत्कल्प (५) पंचकल्प (६) व्यवहार (७) निशीथ (८) जीतकल्प (९) ओघनिर्युक्ति और (१०) पिण्डनिर्युक्ति। आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्य लिखे गये हैं (१) मूलभाष्य (२) भाष्य और (३) विशेषावश्यक भाष्य । प्रथम के दो भाष्य अति संक्षिप्त हैं। उन्हें विशेषावश्यक भाष्य में ही सम्मिलित कर लिया गया है। यह भाष्य पूरे आवश्यक पर न होकर केवल उसके अध्याय 'सामायिक' पर ही है। एक अध्ययन होते हुए भी इसमें ३६०३ गाथाएँ हैं। दशवैकालिक भाष्य में ६३ गाथाएँ हैं। उत्तराध्ययन बहुत ही छोटा है, उसके सिर्फ ४५ ही गाथाएँ हैं । बृहत्कल्प पर दो भाष्य हैं - बृहद् और लघु । बृहद् भाष्य पूरा उपलब्ध नहीं है। लघुभाष्य में ६४९० गाथाएँ हैं। पंचकल्प महा भाष्य की गाथा संख्या २५७४ है । व्यवहार भाष्य में ४६२९ गाथाएँ हैं। निशीथ भाष्य में करीबन ६७०२ गाथाएँ हैं। जीतकल्प भाष्य की गाथा संख्या २६०६ है । ओघनियुक्ति पर दो भाष्य हैं जिनकी क्रमशः गाथा संख्या ३२२ और २५१७ है। पिण्डनिर्युक्ति भाष्य में ४६ गाथाएँ हैं। इनमें कुछ भाष्य हमारे पास उपलब्ध है और कुछ अनुपलब्ध। अनुपलब्ध भाष्य की गाथा संख्या में कहीं-कहीं अन्तर भी हो सकता है। उपलब्ध भाष्यों की प्रतियों के आधार पर सिर्फ दो ही भाष्यकारों के नाम मिलते हैं। (१) आचार्य जिन भद्र और (२) संघदास-गणि। आचार्य जिनभद्र गणि के दो भाष्य हैं। विशेषावश्यक भाष्य और जीतकल्प भाष्य । संघदास गणि के भी दो ही भाष्य हैं। बृहत्कल्प- लघुभाष्य और पंचकल्प महाभाष्य । इन दो भाष्यकारों के अतिरिक्त पुण्यविजयजी के कथनानुसार व्यवहार भाष्य और बृहत्कल्प-बृहद् भाष्य आदि के प्रणेता दूसरे हैं, इनके नाम ज्ञात नहीं हैं। यह भी अन्वेषण विषय रहा है। (१) विशेषावश्यक भाष्य : प्रस्तुत भाष्य जैनागमों में कथित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों का विशालकाय ग्रन्थ है। इसको देखने के बाद अन्य ग्रन्थों को देखने की आवश्यकता ही नहीं होती। इसमें मुख्यतः जैन धर्म में कथनानुसार ज्ञानवाद, प्रमाणशास्त्र, आचार- नीति, स्याद्वाद, यवाद, कर्मसिद्धान्त, गणधरवाद, जमालि आदि आठ निह्नवों आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। प्रस्तुत ग्रन्थ आवश्यक सूत्र की व्याख्या रूप है। इसमें प्रथम अध्ययन 'सामायिक' से संबंधित नियुक्ति गाथाओं का विवेचन है। उपोद्घात में आवश्यकादि अनुयोग के जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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