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आहार, प्रत्याख्यान, सूत्र, आर्द्र आदि विभिन्न विषयों पर विवेचन किया गया है। 'आई'पद की व्याख्या के साथ ही साथ आई की जीवन कथा भी दी गई है। अन्त में नालंदा की नियुक्ति करते समय 'अलम्' शब्द से नाम, स्थापना, द्रव्य भाव निक्षेप से व्याख्या की है और यह भी स्पष्ट किया है कि राजगृह के बाहर नालन्दा है।
विशेष रूप से इस नियुक्ति में 'समाधि' और 'मार्ग' के निक्षेप पद्धति से ध्यानयोग का विश्लेषण किया है। प्राचीन काल में भी ध्यान, समाधि और भावना इन तीन शब्दों के साथ 'योग' शब्द को जोड़ा गया है। अतः प्राचीनकालीन शब्दों का भी दिग्दर्शन इस नियुक्ति में विशेष रूप से मिलता है।
(६) दशाभूतस्कन्ध नियुक्तिः प्रस्तुत नियुक्ति दशाश्रतस्कन्ध नामक छेदसूत्र पर है। प्रथमतः दशा, कल्प एवं भद्रबाहु को नमस्कार करने के बाद 'एक' और 'दश' का निक्षेप पद्धति से व्याख्यान किया गया है। तदनन्तर दस अध्ययनों के अधिकारों का निर्देश
प्रथम अध्याय असमाधि स्थान की नियुक्ति में द्रव्य और भाव समाधि का स्वरूप बताकर स्थान के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, अद्धा, ऊर्ध्व, चर्या, वसति, संयम, प्रग्रह, योध, अचल, गणन, संधान और भाव इन पन्द्रह प्रकार से निक्षेपों का उल्लेख किया है। द्वितीय अध्याय में शबल दोष की व्याख्या करते हुए आचार से भिन्न व्यक्ति भाव शबल बताया है। तृतीय अध्याय में आशातना की व्याख्या दो प्रकार से की है। मिथ्याप्रतिपादन संबंधी और लाभ संबंधी। चतुर्थ अध्याय में 'गणि' और 'संपदा' इन दो पदों का निक्षेप पद्धति से विवेचन किया है। पंचम अध्याय में 'चित्त' और 'समाधि' पर निक्षेप पद्धति से विचार किया गया है। इन दोनों के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव रूप से चार-चार प्रकार हैं। भाव चित्त की समाधि ही ध्यानावस्था की स्थिति है। छठे अध्याय में 'उपासक' और 'प्रतिमा' का निक्षेप-दृष्टि से व्याख्यान किया गया है। उपासक चार प्रकार के बताये हैंद्रव्योपासक, तदर्थोपासक, मोहोपासक तथा भावोपासक। सम्यग्दृष्टि ही भावोपासक हो सकता है। उपासक को श्रावक भी कहते हैं। 'प्रतिमा' भी नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव चार प्रकार से हैं। सद्गुण धारणा का नाम भाव प्रतिमा है। वह दो प्रकार की है। भिक्षु प्रतिमा और उपासक प्रतिमा। भिक्षु प्रतिमा बारह प्रकार की है और उपासक प्रतिमा ग्यारह प्रकार की। सप्तम अध्याय में ही बारह भिक्षु प्रतिमा का वर्णन है, जिसके अन्तर्गत ही ध्यान का स्वरूप स्पष्ट किया है। भिक्षु प्रतिमा चार प्रकार की है- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। भाव भिक्षु प्रतिमा पाँच प्रकार की है। समाधि प्रतिमा, उपधानप्रतिमा, विवेकप्रतिमा, प्रतिसंलीनताप्रतिमा और एकविहारप्रतिमा। अष्टम अध्याय में पर्युषणकल्प का व्याख्यान
ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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