________________
विनय पांच प्रकार का है - दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और उपचार। इनमें तप के अन्तर्गत ही ध्यान का विशेष वर्णन है।
(३) उतराध्ययन नियुक्ति : दशवैकालिक नियुक्ति की ही भांति इस नियुक्ति में भी अनेक पारिभाषिक शब्दों का निक्षेप दृष्टि से चिंतन किया है तथा अनेक शब्दों के विविध पर्यायवाची शब्द भी दिये हैं। यत्र-तत्र अनेक शिक्षाप्रद कथानक भी दिये गये हैं। यथा, गंधार, श्रावक, तोसलिपुत्र, आचार्य स्थूल भद्र, स्कन्दपुत्र, ऋषि पाराशर, कालक, करकंडु, प्रत्येक बुद्ध, हरिकेश, मृगापुत्र आदि आवश्यक नियुक्ति में कथित ध्यान का वर्णन यहाँ पर अदृष्य रूप से संयम शब्द के अन्तर्गत समाविष्ट कर दिया है। द्रव्य प्रव्रज्या की अपेक्षा भाव प्रव्रज्या को अधिक महत्त्व दिया गया है। भाव प्रव्रज्या ही ध्यान
भावांग का दो प्रकार से वर्णन किया गया है (१) श्रुतांग और (२) नो श्रुतांग। श्रृतांग आचारांगादि बारह अंग है और नोश्रुतांग चतुरंगीय के रूप में प्रसिद्ध है जैसे कि मानुष्य, धर्म श्रुति, श्रद्धा और वीर्य (तप और संयम से पराक्रम)
(४) आचारांग-नियुक्ति प्रस्तुत नियुक्ति दोनों श्रुतस्कन्धों पर हैं। इसमें ३४८ गाथाएँ हैं। जिसके अन्तर्गत आचार, अंग, ब्रह्म, चरण, शस्त्र, संज्ञा, दिशा, पृथ्वी, विमोक्ष, ईर्या, निक्षेप, पर्याय आदि शब्दों पर चिंतन किया गया है। विशेषतः अंग शब्द पर विस्तृत चर्चा की गई है। बारह अंगों में आचारांग को ही प्रथम क्यों रखा गया? इसका तार्किक दृष्टि से सुविस्तृत वर्णन किया गया है कि अंगों का सार आचार है और आचार का सार क्रमशः अनुयोग-प्ररूपणा-चरण-निर्वाण-अव्याबाध सुख। अव्याबाध सुख की प्राप्ति तप कर्म से ही होती है। संयम और तप से ही सिद्धि मिलती है। इस नियुक्ति में संयम और तप के अन्तर्गत ध्यान का समावेश किया है। संयमी एवं तपोमय जीवन ही ध्यान है। इस नियुक्ति का यही सार तत्त्व है।
(५) सूत्रकृतांगनियुक्ति : इस नियुक्ति में २०५ गाथाएँ हैं। गा. १८ और २० में 'सूत्रकृतांग' शब्द पर विचार किया गया है। गा. ६६ और ६७ में नारकी के १५ परमाधामी देवों का वर्णन है। अम्ब, अम्बरीष, शाम, शबल, रुद्र, अवरुद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनुष्य, कुम्भ, वालुक, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष इन पन्द्रह प्रकार के देवताओं का कार्य अपने-अपने नामानुसार ही है। गा. ६८ से लेकर ११८ तक की गाथाओं में नियुक्तिकार ने नारकीय जीवों के दुःखों का (वेदनाओं का) हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। गा. ११९ में १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवाद एवं ३२ वैनयिक आदि ३६३ पाखण्डियों का सुंदर वर्णन किया है। इन विषयों के अतिरिक्त षोडश, श्रुत, स्कन्ध, पुरुष, विभक्ति, समाधि, मार्ग, आदान, ग्रहण, अध्ययन, पुण्डरीक, जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
५५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org