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(९) निर्विण्णनिर्विण्ण । इनमें से उच्छित का अर्थ है 'ऊर्ध्वस्थ' (खड़ा हुआ), निषण्ण का अर्थ है 'उपविष्ट' (बैठा हुआ) और निर्विण्ण का अर्थ है 'सुप्त' (सोया हुआ)।
भेदपरिमाण की चर्चा के साथ ही निर्यक्तिकार कायोत्सर्ग के फल की चर्चा प्रारंभ करते हैं। उनका कथन है कि कायोत्सर्ग से देह और मति (जड़ता) की शुद्धि होती है, सुख-दुःख सहने की क्षमता आती है, अनुप्रेक्षा (अनित्यादि भावना) का चिन्तन होता है तथा एकाग्रतापूर्वक शुभध्यान का अभ्यास होता है। शुभ ध्यान का आधार लेकर नियुक्तिकार 'ध्यान' की चर्चा करते हैं।
ध्यान का आगमिक दृष्टि से स्वरूप स्पष्ट करते हुए आचार्य कहते हैं कि अन्तर्मुहूर्त के लिये जो चित्त की एकाग्रता है वही ध्यान है। आगम के अनुसार ही ध्यान के चार भेद बताये हैं। उनमें से प्रथम दो संसार वर्धक और अन्तिम दो मोक्ष के हेतु बताये हैं। इन चार ध्यानों को शुभ और अशुभ भेदों में विभाजित किया है। प्रस्तुत अधिकार शुभ ध्यान के विषय में है। नियुक्तिकार ध्यान से विशिष्ट संबंध रखनेवाली अन्य बातों का भी इसमें वर्णन करते हैं। ध्यान की दृष्टि से ५वा अध्याय विशेष महत्त्व का है।
छठे अध्याय में 'प्रत्याख्यान' का वर्णन है। प्रत्याख्यान दस प्रकार के हैं। नियुक्तिकार इस पर छह प्रकार से विचार करते हैं।
प्रस्तुत नियुक्ति में ध्यान का सविस्तृत वर्णन कायोत्सर्ग अध्याय में ही है। यह नियुक्ति भावनगर और राजनगर से प्रकाशित है।
(२) दशवैकालिक - नियुक्ति - इसमें द्रुमपुष्पिका आदि दस अध्ययन हैं। नियुक्तिकार ने सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति द्वारा 'धर्म' पद का व्याख्यान 'नाम धर्म, स्थापना धर्म, द्रव्य धर्म और भाव धर्म' से चार प्रकार का किया है। धर्म के लौकिक और लोकोत्तर ऐसे दो भेद भी किये हैं। लौकिक धर्म अनेक प्रकार का है - गम्यधर्म, पशु धर्म, देश धर्म, राज्य धर्म, पुखर धर्म, ग्राम धर्म, गणधर्म, गोष्ठीधर्म, राजधर्म आदि। लोकोत्तर धर्म दो प्रकार का है। श्रुतधर्म और चारित्र धर्म। श्रुतधर्म स्वाध्याय रूप है और चारित्र धर्म श्रावक और श्रमणरूप है - श्रुतधर्म के अन्तर्गत ही बाह्य और आभ्यन्तर 'तप' का वर्णन है। आभ्यन्तर तप में ही ध्यान का वर्णन है। ध्यान का अधिकारी आगार और अनगार है। आगारधर्म बारह प्रकार का है और अनगार धर्म शान्ति आदि दस धर्म मूलक तथा पाँच समिति, तीन गुप्ति और पांच महाव्रतरूप हैं। विनयवान साधक ही ध्यान की साधना कर सकता है। नौवें अध्याय में विशेषतः भावविनय के पांच भेद बताये हैं। (१) लोकोपचार (२) अर्थनिमित्त (३) कामहेतु (४) भयनिमित्त और (५) मोक्षनिमित्त। मोक्षनिमित्तक
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ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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