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(१) नियुक्तियाँ : जैसे वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करने हेतु यास्क महर्षि ने निघण्टु भाष्य रूप निरुक्त लिखा वैसे ही जैनागमों के पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करने के लिए आचार्य भद्रबाहु ने प्राकृत पद्य में नियुक्तियों की रचना की। इसकी व्याख्या शैली निक्षेप पद्धति की है। निक्षेप पद्धति में किसी एक पद के संभवित अर्थ करने के बाद उनमें से अप्रस्तुत अर्थों का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ को ग्रहण किया जाता है। यह पद्धति जैन शास्त्र में अति लोकप्रिय रही है। इसीलिए भद्रबाहु ने प्रस्तुत पद्धति को नियुक्ति के लिए उपयुक्त मानी। उनका कथन है कि भगवान महावीर की देशना (उपदेश) के समय कौनसा अर्थ किस शब्द से संबंधित है, इस बात को लक्ष्य में रखते हुए, सही दृष्टि से अर्थ का निर्णय करना और उस अर्थ का मूल सूत्र के शब्दों के साथ संबंध स्थापित करना नियुक्ति का प्रयोजन है।३३ दूसरे शब्दों में कहे तो सूत्र और अर्थ का निश्चित संबंध बतलाने वाली व्याख्या को नियुक्ति कहते हैं।३४ अथवा निश्चयार्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति को नियुक्ति कहते हैं।३५ अनुयोग द्वार सूत्र में तीन प्रकार की नियुक्तियों का दिग्दर्शन है ३६(१) निक्षेप नियुक्ति (२) उपोद्घात - नियुक्ति और (३) सूत्रस्पर्शिका - नियुक्ति.
आचार्य भद्रबाहु ने आगम ग्रन्थों पर दस नियुक्तियां लिखी हैं। वे निम्नलिखित हैं।
(१) आवश्यक नियुक्ति, (२) दशवैकालिक नियुक्ति, (३) उत्तराध्ययन नियुक्ति (४) आचारांग - नियुक्ति (५) सूत्रकृतांग निर्युक्ति (६) दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति (७) बृहत्कल्प - नियुक्ति (८) व्यवहार - नियुक्ति (९) सूर्यप्रज्ञप्ति और (१०) ऋषिभाषित नियुक्ति । इनमें से अन्तिम दो नियुक्तियां उपलब्ध नहीं हैं। शेष आठ उपलब्ध हैं।
भद्रबाहु नाम के एक से अधिक आचार्य हुए हैं। श्वेताम्बर मान्यतानुसार चतुर्दशपूर्वधर आचार्य भद्रबाहु हैं जो नेपाल में महाप्राण साधनार्थ गये थे, जब कि दिगम्बर- परम्परानुसार ये ही भद्रबाहु नेपाल में न जाकर दक्षिण में गये थे। यह तो अन्वेषण का विषय रहा है।
(१) आवश्यक नियुक्ति : यह व्याख्या साहित्य की प्रथम रचना है। इसमें सभी आगमकालीन महत्त्वपूर्ण विषयों का विस्तृत एवं सुव्यवस्थित व्याख्यान है। अन्य नियुक्तियों में इसी की ओर संकेत किया जाता है। इसके छह अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में उपोद्घात है। इसे इस ग्रन्थ की भूमिका रूप में समझना चाहिये। यह भूमिका रूप होते हुए भी इसमें ८८० गाथाएं हैं।
उपोद्घात अध्याय में ज्ञानाधिकार, ऋषभदेव व महावीर चरित्र हैं। क्षेत्र-कालादि
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ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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