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________________ पडिमा, यवमध्यपडिमा, वज्रमध्यपडिमा, पंच व्यवहार एवं बाल दीक्षा की विधि पर विशेष प्रकाश डाला गया है जो ध्यान के पोषक तत्त्व हैं। इन साधनाओं के द्वारा ध्यान विकसित होता है। (४) निशीथ सूत्र - प्रस्तृत छेदसूत्र में चार प्रकार के प्रायश्चित्त का विस्तृत वर्णन है। ये प्रायश्चित श्रमण-श्रमणियों के लिए ही हैं। इसके २० उद्देश्य हैं। १९ वें उद्देश्यक में प्रायश्चित्त का विधान है और २० वें उद्देश्यक में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया है। प्रथम उद्देश्यक में 'गुरुमासिक' प्रायश्चित्त का अधिकार है। द्वितीय उद्देश्यक से पंचम उद्देश्यक तक 'लघुमासिक' प्रायश्चित्त का विधान है। छठे उद्देश्यक से लेकर ग्यारहवें उद्देश्यक तक 'गुरु चातुर्मासिक' प्रायश्चित्त का अधिकार है। बारहवें उद्देशक को लेकर उन्नीसवें उद्देश्यक तक ‘लघुचातुर्मासिक' प्रायश्चित्त का प्रतिपादन किया गया है। बीसवें उद्देश्यक में आलोचना एवं प्रायश्चित्त करते समय लगने वाले दोषों का सम्यक् विचार करके विशेष प्रायश्चित्त की व्यवस्था की गई है। ये सब ध्यान के पोषक हैं। इस ग्रन्थ में करीबन १५०० सूत्र है। ३२ वा आगम'आवश्यक सूत्र' प्रस्तुत आगम जैन साधना का प्राण माना जाता है। जीवन शुद्धि और दोष परिमार्जन का हेतु होने से इसे आवश्यक संज्ञा दी है। जैन साधना पद्धति में चिन्तन की दृष्टि से द्रव्य भाव को अधिक महत्त्व दिया गया है। हर पदार्थ को इन दो के द्वारा मापा जाता है। क्योंकि प्रत्येक क्रिया द्रव्य और भाव के द्वारा ही की जाती है। अतः आवश्यक क्रिया भी दो प्रकार की है- द्रव्य और भाव। । यों तो आवश्यक छह प्रकार के हैं। (१) सामायिक (२) चर्तुविंशतिस्तव (३) वन्दना (४) प्रतिक्रमण (५) कायोत्सर्ग और (६) प्रत्याख्यान यहाँ आवश्यक शब्द आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। आत्मशुद्धि के बिना मनोनिग्रह नहीं हो सकता और मनोनिग्रह के बिना ध्यान संभव ही नहीं। अतः ध्यान साधना में आवश्यक क्रिया सहायभूत है। व्याख्यात्मक आगम साहित्य मूल आगम ग्रन्थों के प्रत्येक शब्दों का गूढार्थ प्रकट करने के लिए व्याख्यात्मक साहित्य का निर्माण हुआ। यह प्राचीनतम परंपरा है। इसे हम चार भागों में विभाजित कर सकते हैं। (१) नियुक्तियां (२) भाष्य (३) चूर्णियाँ (४) संस्कृत टीका। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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