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४ छेद सूत्र
अप्रमादी साधक ही ध्यानयोग की साधना निर्विघ्न रूप से कर सकता है। साधनाकालीन जीवन में लगनेवाले दोषों का परिमार्जन करने से आत्मा निर्मल बनती है। इसलिए जैनागम साहित्य में छेदसूत्र को महत्त्व का स्थान दिया है। जैन संस्कृति का सार श्रमण धर्म है। श्रमण-धर्म की सिद्धि आचार धर्म की साधना से है। ध्यान योग की साधना में आचार धर्म नींव रूप है। आचार धर्म के उत्सर्ग, अपवाद, दोष और प्रायश्चित्त इनकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म क्रियाकलाप को विशुद्ध रूप से समझने के लिए छेत्रसूत्रों का ज्ञान-ध्यान साधक के लिए आवश्यक है। छेद सूत्र की संख्या चार है।
(१) आचार दशा अथवा दशाश्रुतस्कन्ध - इस प्रथम छेदसूत्र के दस अध्ययन हैं, जिनके अन्तर्गत साधक कालीन जीवन में आनेवाले विघ्नों का तथा साधना में सहायक तत्त्वों का विवेचन है। उपासक की ग्यारह पडिमा में से कार्योत्सर्ग पडिमा में ध्यान का स्वरूप अल्प मात्रा में स्पष्ट किया है। किन्तु भिक्षु की बारह पडिमा में से अन्तिम पडिमाओं में ध्यान का स्वरूप विशेष रूप से स्पष्ट किया है। प्रस्तृत आगम में पडिमा के रूप में ध्यान का विश्लेषण किया गया है।
यह आगम लाहोर से प्रकाशित है।
(२) बृहत्कल्प - सभी छेद सूत्रों में इसका स्थान महत्त्व का है। इसके अन्तर्गत श्रमण-श्रमणियों के आचारविषयक विधि-निषेध, उत्सर्ग-अपवाद, तप-प्रायश्चित्त आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है। विशेषतः श्रमणों की विशिष्ट साधना पद्धतियों (स्थविरकल्पी, जिनकल्पी, यथालन्द एवं परिहारविशुद्ध कल्प) का वर्णन है। इसके छह उद्देश्यक हैं, जो सभी गद्य में हैं। इसका ग्रन्थप्रमाण १८५ श्लोक प्रमाण है। क्रमशः ५०+२५+३१+३७+४२ = १८५
साधना पद्धतियों में से ध्यान को निकाल दिया जाय तो साधना सिद्ध हो ही नहीं सकती। अतः ध्यान साधना का अनिवार्य अंग है।
(३) व्यवहार सूत्र - यह कल्पसूत्र का ही पूरक तथा गद्यमय छेदसूत्र है। इसके दस अध्ययन और ३०० सूत्र हैं। इसमें विशेष तौर से प्रायश्चित्त पर विशेष प्रकाश डाला गया है। इसके अतिरिक्त ध्यान योग के विशिष्ट साधक आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक आदि का भी वर्णन है। गीतार्थ, अगीतार्थ, साधक की योग्यता, अयोग्यता का भी स्पष्ट वर्णन मिलता है। दीक्षा का स्वरूप, श्रमण-श्रमणियों की आचार भिन्नता, श्रमण-श्रमणियों का परस्पर व्यवहार कैसे हो? दीक्षा कब दी जाय? योग्य को दी जाय या अयोग्य को? शय्या संस्तारक आदि विभिन्न विषयों पर विवेचन किया गया है। खास तौर से भिक्षु
ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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