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मन को वश में कैसे किया जाय? तो कहते हैं कि जैसे चंचल घोड़े को लगाम से वश किया जाता है, मदोन्मत्त हाथी को अंकुश से वश किया जाता है, समुद्र में डूबती हुई नाव को ध्वजा से वश किया जाता है वैसे ही अठारह स्थानों का दुषम काल में दुःखपूर्वक जीवन व्यतीत किया जाता है। १) गृहस्थ लोगों के कामभोग अल्पकालीन हैं, २) दुषमकालीन मनुष्य विशेष छल-कपट करनेवाले हैं, ३) दुःख मुझे चिरकाल स्थायी नहीं होंगे, ४) संयम त्यागने से नीच पुरुषों का सन्मान करना होगा, ५) वमन किये हुए विषयभोगों को पुनः पीना होगा, ६) नीच गति योग्य कर्म बांधने होंगे, ७) गृहपाश में स्थित गृहस्थों को धर्म दुर्लभ है, ८) विचिकादि रोग धर्महीन के वध के लिए होते हैं, ९) संकल्प विकल्प भी उसको नष्ट करनेवाले हैं, १०) गृहस्थावास क्लेश से सहित
और चारित्र से रहित है, ११) गृहवास बंधनरूप है और चारित्र मोक्षरूप है, १२) गृहवास पापरूप है और चारित्र पाप से सर्वथा रहित है, १३) गृहस्थों के कामभोग बहुत से जीवों को साधारण रूप है, १४) प्रत्येक आत्मा के पुण्य-पाप पृथक-पृथक हैं, १५) मनुष्य जीवन कुश के अग्र भाग पर स्थित जलबिंदु के समान चंचल है, अनित्य है, १६) प्रबल पापों का उदय है जिससे मुझे ऐसे निन्द्य विचार उत्पन्न होते हैं, १७) दुष्ट विचारों एवं मिथ्यात्वादि से बांधे हुए पूर्वकृत कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं, अथवा तप द्वारा उक्त कमों का क्षय करने से मोक्ष हो सकता है, १८) चिन्तन करने से मन को वश में किया जा सकता है।
ध्यान का काल स्वाध्याय के रूप में दिन के प्रथम और चतुर्थ प्रहर तथा वैसे ही रात्रि के भी जानना चाहिए। प्रस्तृत आगम में स्पष्ट किया है कि स्वाध्याय के बाद ध्यान करें। स्व अध्ययन के बाद ही ध्यान होगा। अतः ध्यान ही तप है।
प्रस्तुत आगम लुधियाना से प्रकाशित है।
(३-४) नन्दी सूत्र और अनुयोग द्वार - ये आगम में चूलिका सूत्र कहलाते हैं। चूलिका शब्द का अर्थ है- अध्ययन एवं ग्रन्थ विषयक स्पष्टीकरण।
तीसरा मूलसूत्र नंदी में पांच ज्ञान का भेद प्रभेदों के साथ विस्तृत वर्णन किया गया है। सम्यग्ज्ञान के बिना ध्यान की योग्यता प्राप्त नहीं होती। यह इसमें स्पष्ट किया है।
अनुयोगद्वार सूत्र में इन्हीं पाँच ज्ञानों को नय, प्रमाण और निक्षेपों के द्वारा विशेष वर्णित किया है। इन्हीं के द्वारा सम्यग्ज्ञान का विस्तृत विचार किया गया है। ध्यान की पात्रता सम्यग्ज्ञान से ही है। यह आगम से स्पष्ट किया गया है।
नन्दी सूत्र का प्रकाशन पाथर्डी से हुआ है और अनुयोग द्वार सूत्र का अजमेर से।
इन दोनों सूत्रों के क्रम मे कहीं-कहीं अंतर है। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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