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न्यग्रोधवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ। तदनन्तर वे सिद्ध बुद्ध मुक्त बने। धर्मध्यान
और शुक्लध्यान ही साधना के श्रेष्ठ मार्ग है। यह अहमदाबाद से प्रकाशित है। ४ मूलसूत्र
१) उत्तराध्ययन :- यह जैनागमों का प्रथम मूलसूत्र है। कहीं-कहीं दशवैकालिक को प्रथम मूलसूत्र भी मानते हैं। उत्तराध्ययन में भगवान् महावीर की अन्तिम देशना का संग्रह है (संकलन है) इसमें ३६ अध्ययन हैं और उन सबके भिन्न-भिन्न नाम हैं। प्रथम "विनय' का अध्ययन और अन्तिम में जीव अजीव का स्वरूप स्पष्ट किया है। इसमें चार अनुयोगों (चरण-करणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग) द्वारा परीषह, लेश्या, कर्म, समाचारी, लोकालोक, आदि विभिन्न विषयों का वर्णन किया गया है। परन्तु मुख्यतः चरण-करणानुयोग और धर्मकथानुयोग द्वारा क्रमशः अष्टप्रवचनमाता (पांच समिति, तीन गुप्ति), दस साधु समाचारी, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार एवं तपाचार तथा सम्यक्त्व पराक्रम के संवेग, निर्वेद, धर्म-श्रद्धा, गुरु और साधर्मियों की सेवा शुश्रूषा, आलोचना, निन्दा, गर्हा, सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान, स्तवस्तुतिमंगल, काल प्रतिलेखना, प्रायश्चित्करण, क्षमापना, स्वाध्याय, वाचना, प्रतिपृच्छना, परावर्त्तना, अनुप्रेक्षा, धर्म-कथा, श्रुत की आराधना, एकाग्र मन की सन्निवेशना, संयम, तप, व्यवदान, सुखशाय, अप्रतिबद्धता, विविक्त शयनासन का सेवन, विनिवर्तना, संभोग-प्रत्याख्यान, उपधि-प्रत्याख्यान, आहारप्रत्याख्यान, कषाय-प्रत्याख्यान, योग-प्रत्याख्यान, शरीर-प्रत्याख्यान, सहायप्रत्याख्यान, भक्त-प्रत्याख्यान, सद् भाव प्रत्याख्यान, प्रतिरूपता, वैयावृत्य, सर्वगुण सम्पूर्णता, वीतरागता, शांति, मुक्ति, मार्दव,आर्जव, भाव सत्य, करण-सत्य, योग सत्य, मनोगुप्तता, वागगुप्तता, कायगुप्तता, मनः समाधारण, वाक् समाधारण, काय समाधारण, ज्ञानसम्पन्नता, दर्शनसम्पन्नता, चारित्रसम्पन्नता, श्रोत्र इन्द्रिय-निग्रह, चक्षु इन्द्रिय-निग्रह, प्राणइन्द्रिय-निग्रह, जिह्वा इन्द्रिय-निग्रह, स्पर्शइन्द्रिय-निग्रह, क्रोधविजय, मान-विजय, माया-विजय, लोभ-विजय, राग-द्वेष और मिथ्यादर्शन-विजय, शैलेशी और अकर्मता इन ७३ बोल द्वारा धर्म ध्यान शुक्लध्यान का स्वरूप स्पष्ट किया है। धर्मध्यान का मूल संवेग है और शुक्लध्यान का फल अकर्मता है। चरणकरणानुयोग की भांति ही धर्मकथानुयोग द्वारा भी जैसे कपिल केवली, नमिराजर्षि, इक्षुकार राजा, संयति राजा, मृगापुत्र, अनाथीमुनि, समुद्रपालित राजा, विजयघोष राजा आदि संयमी साधकों के माध्यम से धर्म और शुक्लध्यान का स्वरूप वर्णित किया है।
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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