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________________ उपासक की ग्यारह पडिमाओं की आराधना की। उन ग्यारह पडिमाओं में कायोत्सर्ग पडिमा का वर्णन है, जो ध्यान का प्रारंभ काल है। इसमें कायोत्सर्ग के माध्यम से ध्यान का उल्लेख किया है। प्रस्तुत आगम लुधियाना आदि स्थानों से प्रकाशित है। ८) अंतगडदसाओ :- यह द्वादशांगी का आठवा अंग है। इसमें आठ वर्ग और ९० अध्ययन हैं। ९० अध्ययन में अरिष्टनेमि और महावीरकालीन ९० महापुरुषों का वर्णन हैं। आठ वर्गों में क्रमशः १० + ८ + १३ + १० + १० + १६ + १३ + १० अध्ययन गुंफित है। पाँच वर्गतक भगवान् अरिष्टनेमि के पास प्रवर्जित होने वाले ५१ साधकों का उल्लेख है। बाद के तीन वर्ग में महावीर कालीन ३९ साधकों की साधना का उल्लेख है। प्रस्तुत आगम में तप साधना का विशिष्ट उल्लेख है। इस अंग के द्वारा स्पष्ट कर दिया है कि तप ही ध्यान है। ९० साधकों में से मुख्य मुख्य साधकों ने गुणरत्नसंवत्सर, बारह भिक्षु-पडिमा, गजसुखमालमुनि ने सिर्फ बारहवीं भिक्षु पडिमा तथा सातवें आठवें वर्ग में श्रेणिक राजा की नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा, नन्दश्रेणिका, काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेनकृष्णा, महासेनकृष्णा आदि महाराणियों ने श्रमण धर्म अंगीकार करके ग्यारह अंगों का अध्ययन करके 'रत्नावली, कनकावली, क्षुल्लकसिंह निष्क्रीडित, महानिष्क्रीडित, लघु सर्वतोभद्र, महासर्वतो भद्र, भिक्षु-पडिमा, मुक्तावली एवं आयंबिल वर्धमान' आदि उग्र तपाराधना करके अन्त में संलेखना व्रत से कमेंधन को जलाकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाते हैं। यहाँ पर 'तप' यह ध्यान का प्रतीक है। ध्यान प्रक्रिया से कर्म को समूल नष्ट कर दिया जाता है। इसीलिये तो नौवें अंग में भी तप का ही वर्णन किया है। ९) अणुत्तरोववाइय दसाओ :- इस आगम के तीन वर्ग हैं। प्रथम वर्ग में १० अध्ययन, द्वितीय वर्ग में १३ अध्ययन और तृतीय वर्ग में १० अध्ययन हैं। प्रत्येक वर्ग में मुख्यतः एकेक महापुरुष का वर्णन है। प्रथम वर्ग में गुणरत्न संवत्सर, चउत्थ, छठ्ठ, अठुम, दसम, दुवालसेहिं, अधमासखमण आदि उग्र तप का वर्णन है। द्वितीय वर्ग में भी इसी प्रकार है। तीसरे वर्ग में भगवान् महावीर कालीन चौदह हजार श्रमणों में धन्ना अणगार को उग्र तपस्वी माना गया है। अत्यन्त कठोर तपाराधना में छह मास तक छठ्ठ - छठ्ठ (बेले-बेले) के पारणे में आयंबिल (लुखा सूखा आहार) व्रत की आराधना से कर्मों की महानिर्जरा करने वाले धन्ना अनगार ही है। प्रस्तुत आगम में ध्यान का पर्यायवाची 'तप' है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि ध्यानाग्नि द्वारा समस्त कर्म-इंधन को जलाकर आत्मा का निज-स्वरूप प्राप्त किया जाता जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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