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की अपेक्षा इसका कलेवर विशाल है, यह १५००० श्लोक प्रमाण माना जाता है, इसमें ३६००० हजार प्रश्नोत्तरी है। विभिन्न विषयों का विस्तृत वर्णन है। साथ में तप के अन्तर्गत ध्यान का विस्तृत वर्णन किया है। स्थानांग सूत्र की तरह ही इसमें ध्यान का वर्णन है। विशेषता इतनी ही है कि ध्यान यह तप का अंग है।
इस सूत्र के अतिरिक्त अन्य किसी भी अंग अथवा अंग बाह्य सूत्रों के प्रारंभ में मंगल का कोई विशेष पाठ उपलब्ध नहीं होता, जो इसमें है। जिससे पदस्थ ध्यान का संकेत मिलता है। प्रस्तुत आगम में धर्मध्यान और शुक्लध्यान के स्वरूप का विशेष विवेचन मिलता है।
प्रस्तुत आगम सात भागों में सैलाना से प्रकाशित हुआ है।
६) नायाधम्मकहाओ :- इसके भी दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध में १९ अध्ययन और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में १० वर्ग हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध में पूर्व कथित आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल - इन चार ध्यानों को विभिन्न कथायोग के द्वारा स्पष्ट किया है तथा उन चारों ध्यान का फल भी स्पष्ट कर दिया है। मेघकुमार (अ. १) और तेतलीपुत्र (अ.४) की कथा द्वारा पहले आर्तध्यान का स्वरूप स्पष्ट किया और बाद में उन दोनों को क्रमशः भगवान् महावीर एवं पोट्टिला के बोध से धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान का स्वरूप स्पष्ट किया। विजय चोर की कथा (अ.२) द्वारा रौद्रध्यान का स्वरूप स्पष्ट करके उसका फल नरक गति बताया। मल्ली भगवती की कथा द्वारा (अ.८) शुक्लध्यान का स्वरूप स्पष्ट करके उसका फल मोक्ष बताया। नन्दमणियार श्रावक की कथा (अ.१३) द्वारा आर्तध्यान का स्वरूप स्पष्ट करके उसका फल तिर्यंच गति बताया। नागेश्री की कथा द्वारा रौद्रध्यान का परिणाम नरकगति है; यह स्पष्ट किया गया और यह भी बताया गया कि भविष्य में साध्वी के सुयोग से परिणामों की विशुद्धि उत्तरोत्तर करके यही नागेश्री का जीव द्रौपदी के रूप में जन्म लेकर धर्म-शुक्लध्यान की साधना से स्वर्ग की प्राप्ति करता है। कुण्डरीक और पुण्डरीक राजा की कथा द्वारा क्रमशः रौद्र और धर्मध्यान का स्वरूप विवेचन किया है।
प्रस्तुत आगम में धर्म कथानुयोग द्वारा चार ध्यान का विस्तृत वर्णन किया गया है। यहाँ ध्यान का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। चारों ध्यान का फल भी तिर्यंचगति, नरकगति, देवगति, मनुष्यगति एवं मोक्ष का स्वरूप वर्णित किया है।
यह आगम पाथर्डी से प्रकाशित हुआ है।
७) उवासगदसाओ:- यह द्वादशांगी का सातवा अंग है। इसमें भगवान महावीर कालीन दस साधकों का वर्णन है। उन दस श्रावकों ने श्रावक धर्म को अंगीकार करके
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ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य
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