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मानव शरीर और योग ५ । बात भी यही है, जैनदर्शन के अनुसार भी आत्मा को चैतन्यधारा सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है, क्षयोपशम भी सम्पूर्ण आत्मप्रदेशों में है, सिर्फ नवृत्ति के उपकरण, जिन्हें इन्द्रियाँ कहा जाता है, शरीर के विभिन्न स्थानों र केन्द्रित हैं, इसीलिए आत्मा उस इन्द्रिय-विशेष से तज्जन्य ज्ञान प्राप्त कर आता है । यदि त्वचा को अधिक संवेदनशील बनाया जा सके तो आत्मा त्वचा । ही अन्य सभी इन्द्रियों का ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हो जायगा।
__उपयुक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि मानव के भीतर असीम 'अगणित क्षमताएँ हैं, शक्तियाँ हैं; आवश्यकता है सिर्फ उन्हें पहचानने व कसित करने की। ___ शरीर से मन की शक्ति असीम है और मन से आत्मा की शक्ति अनन्त । इन शक्तियों को पहचानने व विकसित करने का साधन है, योग ।
योग द्वारा शरीर, मन एवं आत्मा की सुप्त शक्तियों का ज्ञान एवं का विकास किया जा सकता है। इसोलिए योग-साधना शक्ति जागरण [ मार्ग है।
शरीर की अन्य अद्भुत विशेषताएं : चक्रस्थान और मर्मस्थान मांस, मज्जा, अस्थि, रक्त आदि के अतिरिक्त शरीर में कुछ अन्य भुत विशेषताएँ भी हैं। __हमारे शरीर में अनेक मर्मस्थान हैं, चक्र हैं । मर्मस्थान सात सौ हैं र चक्र सात हैं । मर्मस्थानों का चिकित्सा शास्त्र में विशेष उपयोग हुआ है, पान की एक्यूपन्चर चिकित्सा प्रणाली का आधार ये मर्मस्थान ही हैं । कों का महत्व यौगिक प्रक्रियाओं में हैं। । मर्मस्थानों पर ज्ञानतन्तु अधिक एकत्रित और सघन होते हैं । ये स्थान स्पर सम्बन्धित भी होते हैं । यही कारण है कि शरीर में किसी एक स्थान सुई चुभोने से दूसरे स्थान का दबन्द हो जाता है। हमारे यहाँ पहले कानों छेदने की प्रथा थी। उसका चिकित्साशास्त्रीय कारण यह था कि कानों छेदने से मनुष्य की मानसिक उत्त जना कम हो जाती थी, क्योंकि कानों निचला हिस्सा (कान की लौ, जहाँ स्त्रियाँ ईयर-रिंग आदि पहनती हैं) स्थान है और उसका मस्तिष्क के उत्त जनादायक तन्तुओं से सीधा
Sanitidieo
चक्रस्थान वे होते हैं जहाँ ज्ञान तन्तु उलझे होते हैं। चक्रस्थान, सूक्ष्म र (तैजसशरीर) में हैं (इसे कोई-कोई भावनाशरीर भी कहता है) किन्तु का आकार बनता है स्थूल शरीर (औदारिक शरीर) में ।
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