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________________ ४ जैन योग : सिद्धान्त और साधना किन्तु त्वचा की सामर्थ्य और शक्ति भी कम नहीं है। इसका महत्व भी अत्यधिक है। ___मानव शरीर की चमड़ी का क्षेत्रफल लगभग २५० वर्ग फुट होता है और वजन ६ पौण्ड (लगभग २ किलो, ७५० ग्राम)। इसकी सबसे पतली तह आँखों पर होती है-लगभग '५ मिलीमीटर और सबसे मोटी तह पैर के तलवों में होती है-६ मिलीमीटर। साधारणतया इसकी मोटाई ३ से ३ मिलीमीटर होती है। इसमें अगणित छेद होते हैं। प्राचीन धर्म-शास्त्रों के अनुसार त्वचा में साढ़े तीन करोड़ रोम होते हैं। त्वचा शरीर के लिए एयर कण्डीशनर का काम करती है, अर्थात् जाड़ों में यह शरीर को गर्म रखती है और गर्मियों में ठण्डा । इसकी छह परतें होती हैं, जो विभिन्न कार्य करती हैं। त्वचा में इतनी अद्भुत क्षमताएँ भरी पड़ी हैं कि यदि उन्हें विकसित कर लिया जाय तो वह अन्य इन्द्रियों का काम भी कर सकती है। त्वचा के द्वारा देखा जा सकता है, सूघा जा सकता है, सुना जा सकता है, स्वाद लिया जा सकता है और स्पर्श तो उसका प्रमुख कार्य है ही। (१) मास्को में २२ वर्षीया कुमारी रोजा कुलेशोवा ने अपने दाहिने हाथ की तीसरी व चौथी अंगुली में दृष्टि शक्ति की विद्यमानता का परिचय दिया है । उसने अपनी आँखों पर पट्टी बँधवाकर वैज्ञानिकों के सामने अपनी इन दो अंगुलियों द्वारा समाचार-पत्र का एक पूरा लेख पढ़कर सुनाया और फोटो चित्रों को पहचाना।। (२) एक ६ वर्षीय लड़की में यह शक्ति और भी बढ़ी-चढ़ी है। यह लडकी खाऊब की श्रीमती ओलगा ब्लिजनोवा की पुत्री है। उसने आँखों पर पट्टी बँधी होने पर हाथ से छूकर शतरंज की काली सफेद गोटों को अलगअलग कर दिया, रंगीन कागजों की कतरन की रंग के अनुसार अलग-अलग ढेरी बना दी, रंगीन किताबों को पढ़ दिया । उसने बाँह, कन्धा, पीठ, पैर आदि शरीर के अन्य अवयवों से छूकर भी वैसे ही परिणाम प्रस्तुत किये। इतना ही नहीं, वह दस सेन्टीमीटर दूर रखी वस्तुओं के रंग आदि उसी प्रकार बता देती है, जैसे हम लोग खुली आँखों से बताते हैं। इन परीक्षणों से मनोविज्ञान शाखा के वरिष्ठ शोधकर्ता प्रो० कोन्स्टाटिन प्लातोनोव इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि-मानवीय चेतना-विद्युत की व्यापकता को देखते हुए इस प्रकार की अनुभूतियाँ अप्रत्याशित नहीं है । नेत्रों में जो शक्ति काम करती है, वही अन्यत्र ज्ञानतन्तुओं में काम करती है, उसे विकसित करने पर मस्तिष्क को वैसी ही जानकारी मिल सकती है, जैसी नेत्रों से मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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