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६ जैन योग : सिद्धान्त और साधना
इस स्थिति को एक दृष्टान्त से समझिये। जैसे कोई वस्तु दर्पण के सामने रखी है और उसका आकार (प्रतिबिम्ब) उस दर्पण में बन रहा है; किन्तु वस्तु तो वहाँ है ही नहीं।
ऐसी दशा में वैज्ञानिकों के सामने कठिनाई यह है कि वे उन चक्रस्थानों से प्रयोगों द्वारा वैसे ही परिणाम प्राप्त करना चाह रहे हैं, जैसे यौगिक ग्रन्थों में चक्र जागरण से बताये गये हैं। लेकिन वैसे परिणाम उन्हें प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं।
स्थिति बिल्कुल वैसी ही है जैसे कि एक नदी के तट पर खड़े वृक्ष पर एक मणिजटित मूल्यवान हार टंगा था, उसकी परछाईं जल में पड़ रही थी, मणियों की दीप्ति से नदी का वह स्थान जगमगा रहा था। उस चमक से विमोहित होकर कोई व्यक्ति पानी में हाथ-पैर मार कर उस हार को पाने का प्रयत्न करे, तो क्या वह सफब हो सकता है ?
चक्रस्थानों का, योगशास्त्रों में 'कमल' नाम दिया है जैसे हृदय-कमल, नाभि-कमल आदि; जूडो (Judo) में क्यूसोस (Kyushos); और शरीरशास्त्री इन्हें ग्लेण्डस (Glands) कहते हैं। ग्लैंड्स (Ductless Glands) वे अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ हैं जिनका स्राव शरीर से बाहर नहीं निकलता, हारमोन के रूप में शरीर के अन्दर ही रक्त आदि में मिल जाता है।
यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि चक्रों के जो स्थान और आकार योगाचार्यों ने बताये हैं, आज के शरीरशास्त्रियों ने जो स्थान और आकार ग्लैण्ड्स के माने हैं और जूडो पद्धति में जो स्थान एवं आकार क्यूसोस के स्वीकार किये गये हैं-वे तीनों समान हैं। तीनों की धारणा समान है। उसमें कोई विशेष अन्तर नहीं है । पृष्ठ ७ की तालिका से यह बात पूर्णतः स्पष्ट हो जायगी
१. सात चक्रों के स्थान ये हैं
(१) मूलाधार का सुषुम्ना का निचला सिरा, (२) स्वाधिष्ठान का मूलाधार से चार अंगुल ऊपर, (३) मणिपूर का नाभि, (४) अनाहत का हृदय, (५) विशुद्धि का कंठ, (६) आज्ञा का भ्र मध्य और (७) सहस्रार का मस्तिष्क (कपाल) में स्थित तालु अथवा ब्रह्मरन्ध्र ।
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