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की अपेक्षा से धर्मध्यान के तीन भेद २७७, धारणा और ध्यान में अन्तर २७८, ध्यान का महत्व २७८, ध्यान के भेद-प्रभेद २७६, आर्तध्यान के चार भेद २७६, रौद्र ध्यान २८१, रौद्रध्यान के चार भेद २८१, धर्मध्यान : मुक्ति साधना का प्रथम सोपान २८२, ध्यान के आठ अंग २८३, धर्मध्यान के आगमोक्त चार भेद १८४, आज्ञा विचय धर्मध्यान २८५, अपायविचय धर्मध्यान २८५, विपाकविचय धर्मध्यान २८५, संस्थान विचय धर्मध्यान २८५, धर्मध्यान के आलम्बन २८६, धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ २८६, ध्येय की अपेक्षा ध्यान के भेद २८७, योग की अपेक्षा से धर्मध्यान के भेद २८७, पार्थिवी धारणा २८८, आग्नेयी धारणा २८८, वायवी धारणा २८६, वारुणी धारणा २८६, तत्वरूपवती धारणा २८६, ध्यान-साधना की अपेक्षा से धर्मध्यान के भेद २६०, पिण्डस्थ ध्यान २९०, पदस्थ ध्यान २६०, रूपस्थ ध्यान २६१, रूपातीत ध्यान २६१, धर्मध्यान की फलश्रुति २६१, महाप्राणध्यान साधना २६१, श्र तकेवली आचार्य भद्रबाहु का दृष्टांत २६३,
आचार्य पुष्यमित्र का दृष्टान्त २६३ । १३. शुक्लध्यान एवं समाधियोग
२६६-३१३ शुक्लध्यान : मुक्ति की साक्षात साधना २६६, शुक्लध्यान का अधिकारी २६६, शुक्लध्यानी के लिंग २६७, शुक्लध्यान के आलम्बन २६८, शुक्लध्यान की अनुप्रेक्षाएँ २६६, कर्मग्रंथों की अपेक्षा शुक्लध्यान के अधिकारी २६६, शुक्लध्यान के भेद ३००, पृथक्त्ववितर्क सविचार शुक्लध्यान ३०१, एकत्ववितर्क अविचार शुक्लध्यान ३०२, सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाती शुक्लध्यान ३०३, समुच्छिन्न क्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान ३०३, शुक्लध्यान और समाधि ३०४, शुक्लध्यान और समाधि की तुलना ३०५,
जैन दर्शन के अनुसार मुक्ति साधना का क्रम ३१२ । [३] प्राण साधना
३१५-३६५ १. प्राण-शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ ३१५-३३१
सृष्टि में सर्वत्र व्याप्त प्राणशक्ति ३१५, प्राण के शास्त्रोक्त दश भेद ३१६, योग की अपेक्षा प्राणशक्ति एक ही है ३१६, प्राणशक्ति प्रवाह का केन्द्र ३१७, प्राणवायु और प्राण का सम्बन्ध ३१७, आसन-शुद्धि ३१८, विभिन्न आसनों के लक्षण ३१६, नाड़ी-शुद्धि ३२०, स्वर-विज्ञान द्वारा शारीरिक रोगों का उपचार ३२१, प्राणायाम ३२२, योगिक प्राणायाम में सुषुम्ना का महत्व ३२२, कुण्डलिनी शक्ति का ऊर्वारोहण और चक्रभेदन ३२५, कुण्डलिनी शक्ति की अवस्थिति ३२६, कुण्डलिनी शक्ति का का जागरण हठयोग और भावनायोग से ३२७, कुण्डलिनी जागरण के
आसन ३२७, कुण्डलिनी शक्ति का वर्ण एवं दृश्यता ३२८, चक्रों (कमलों) Jain Education International For Private & Personal Use Only
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