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( ६१ ) अधिक उपयुक्त २४२. (४) रस-परित्याग तप : अस्वाद वृत्ति की साधना २४२, रस-परित्याग तप की दो भूमिकाएँ २४३, (५) काय-क्लेश तप : काय-योग की साधना २४४, प्रमुख आसनों का वर्णन २४४, दो प्रकार के कष्ट सहना २४५, तेजस् शरीर की साधना २४६, भाव प्राणायाम २४७, कायक्लेश तप के कुछ प्रमुख लाभ २४७, (६) प्रतिसंलीनता तप : अन्तर्मुखी बनने की साधना २४७, प्रतिसंलीनता तप के विभिन्न नाम २४८, प्रतिमलीनता तप के चार भेद २४८, इन्द्रिय प्रतिसंलीनता तप की साधना २४८, इन्द्रिय प्रतिसंलीनता तप की साधना के दो प्रकार २४६, कषाय प्रतिसंलीनता तप २५०, कषाय प्रतिसंलीनता तप के चार भेद २५०, क्रोध के आवेग की उपशांति के व्यावहारिक उपाय २५१, मान, माया, लोभ की उपशांति के व्यावहारिक उपाय २५१, योग प्रतिसंलीनता तप २५१, योग प्रतिसंलीनता तप की भूमिकाएं २५२, मनोयोग की साधना २५२, वचनयोग की साधना २५३, काययोग की साधना २५३, विविक्तशयनासनसेवना २५३, विविक्तशयनासन सेवना का वैज्ञानिक
आधार २५४, बाह्य तपों से तपोयोगी साधक को लाभ २५६ । ११. (तपोयोग साधना २) आभ्यन्तर तप : आत्मशुद्धि की सहज साधना
२५८-२७० आभ्यंतर तप साधना का उद्देश्य २५८, (१) प्रायश्चित्त · पाप शोधन की साधना २५८, प्रायश्चित्त के भेद २६०, मिच्छामि दुक्कडं का रहस्य २६०, प्रायश्चित्त का लक्ष्य २६०, (२) विनय : अहं विसर्जन की साधना २६१, विनय के सात भेद २६१, ज्ञान विनय २६१, दर्शन विनय २६१, चारित्र विनय २६२, मनोविनय २६२, वचनविनय २६२, कायविनय २६२, लोकोपचारविनय २६२, (३) वैयावृत्य तप : समर्पण की साधना २६३, (४) स्वाध्याय तप : स्वात्म-संवेदनज्ञान की साधना २६४, स्वाध्याय के विभिन्न अर्थ २६४, स्वाध्याय के अंग अथवा भेद २६५, स्वाध्याय तप की फल श्र ति २६६, ध्यान तप : मुक्ति की साक्षात साधना २६७, (६) व्युत्सर्ग तप : ममत्व विसर्जन की साधना २६७, व्युत्सर्ग तप के भेद २६७, गण व्युत्सर्ग २६८, शरीर व्युत्सर्ग २६८, कायोत्सर्ग की साधना २६८, उपधि व्युत्सर्ग २६६, भक्तपान व्युत्सर्ग २६६, कषाय व्युत्सर्ग २७०, संसार
व्युत्सर्ग २७०, कर्म व्युत्सर्ग २७० । १२. (तयोयोग साधना ३) ध्यानयोग साधना
२७१-२६५ ___ मन की दो अवस्थाएँ २७१, ध्यान का लक्षण २७१, ध्यान साधना के प्रयोजन और उपलब्धियाँ २७२, मन की चंचलता के कारण २७४, ध्यान का काल-मान २७५, ध्यान की पूर्वपीटिका : धारणा २७६. आलम्बन
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