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________________ ( ५६ ) ५. परिमार्जनयोग-साधना (षडावश्यक) १६२-१७६ परिमार्जन की आवश्यकता १६२, परिमार्जन की विधि, आवश्यक १६२, आवश्यक, जैनयोग का अनिवार्य अंग १६३, आवश्यक साधना के छह अंग १६४, साधना का वैज्ञानिक क्रम १६४, (१) समतायोग बनाम सामायिक की साधना १६६, चार प्रकार की शुद्धि १६७, द्रव्यशुद्धि १६७, क्षेत्रशुद्धि १६७, कालशुद्धि १६७, भावशुद्धि १६७, (क) मनःशुद्धि १६८, (ख) वचनशुद्धि १६८ वचन के दो भेद अन्तर्जल्प और बहिर्जल्प (सूक्ष्म एवं स्थूल वचन योग) १६८, (ग) कायशुद्धि १६६, (२) चतुर्विंशतिस्तव : भक्तियोग का प्रकर्ष १६६, (३) वन्दना : समर्पणयोग १७०, (४) प्रतिक्रमण : आत्मशुद्धि का प्रयोग १७०, (५) कायोत्सर्ग : देह में विदेह साधना १७०, कायोत्सर्ग की विधि १७१, कायोत्सर्ग के लाभ १७१, (१) देहजाड्य शुद्धि १७१, (२) मतिजाड्यशुद्धि १७२, (३) सुख-दुःख तितिक्षा १७२, (४) अनुप्रेक्षा १७२, (५) ध्यान १७२, शारीरिक दृष्टि से कायोत्सर्ग के लाभ १७२, (६) प्रत्याख्यान : गुणधारण की प्रक्रिया १७३, प्रत्याख्यान के आठ विशिष्ट नियम १७४, षडावश्यक : सम्पूर्ण अध्यात्मयोग १७५ । ६. ग्रन्थिभेदयोग-साधना १७७-१८८ ग्रथि का अभिप्राय १७७, मानसिक ग्रन्थियाँ १७७, आत्मिक गुणों की अपेक्षा से ग्रन्थियों का दो भागों में वर्गीकरण १७७, ग्रन्थि और शल्य १७८, जैन मनोविज्ञान के अनुसार दो प्रकार की ग्रन्थियाँ १७८, (वैदिक परम्परा द्वारा मान्य तीन हृदय प्रन्थियाँ-(१) आगामी कर्म (२) संचित कर्म (३) प्रारब्ध कर्म अथवा ब्रह्मग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि और रुद्रग्रन्थि तथा इन ग्रंथियों के भेदन की प्रक्रिया और परिणाम १७८-१८०). गन्थियाँ कैसे निर्मित होती हैं ? १७६, ग्रंथियों की अवस्थिति १८१, आधुनिक सभ्यता का उपहार : विभिन्न ग्रन्थियां १८२, ग्रथियों कारण हैं-दोहरे व्यक्तित्व की १८३, ग्रंन्थियों के मूल कारण और आधार १८४, ग्रन्थिभेदयोग की साधना १८६, ग्रन्थिभेद की प्रक्रिया एवं क्रम १८६, ग्रन्थिभेद साधना के परिणाम १८८ । ७. तितिक्षायोग-साधना १८६-१९६ तितिक्षा का अभिप्राय १८६, परीषहजय : समत्व की साधना १८६, उपसर्गविजय १६२, उपसर्ग और परीषह : श्रमण की तितिक्षा की कसोटी १६३, गृहस्थ साधक के जीवन में तितिक्षायोग १६३, तितिक्षायोग साधना का उत्कर्ष : दश श्रमणधर्म १६४, दश श्रमणधर्म और तितिक्षायोग १६५, तितिक्षायोग की निष्पत्तियाँ १६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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