SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५८ ) १३५, (५) अपरिग्रह महाव्रत : निस्पृहयोग १३५, पाँच भावनाएँ १३६, श्रमण के अन्य आवश्यक गुण १३७, श्रमण गुण बनाम मोगमार्ग १४० । ३. विशिष्ट योग भूमिका-प्रतिमायोग साधना १४१-१५३ प्रतिमा का आशय १४१, (१) श्रावक प्रतिमा (गृहस्थयोगी की विशिष्ट साधना भूमिकाएँ) १४१, (१) दर्शन प्रतिमा (शुद्ध, अविचल एवं प्रगाढ़ श्रद्धा) १४२, (२) व्रत प्रतिमा (विरति की ओर बढ़ते चरण) १४३, (३) सामायिक प्रतिमा (योग साधना का प्रारम्भ) १४३, (४) पौषध प्रतिमा (अहोरात्रि की आम-साधना) १४४, (५) नियम प्रतिमा (विविध नियमों की साधना) १४४, (६) ब्रह्मचर्य प्रतिमा (चेतना का ऊर्ध्वारोहण) १४५, (७) सचित्त त्याग प्रतिमा (आहार संयम) १४५, (८) आरंभत्याग प्रतिमा (अहिंसायम की साधना) १४६, (९) प्रेष्य-परित्याग प्रतिमा (संवरयोग तथा सूक्ष्म अहिंसा यम की साधना) १४६, (१०) उद्दिष्टभक्तत्याग प्रतिमा (संवरयोग की साधना), १४७, (११)श्रमणभूत प्रतिमा (गृहस्थयोग साधना का अन्तिम सोपान) १४७, प्रतिमाओं की विशेष बातें १४८, (२) भिक्षु प्रतिमा (गृहत्यागी श्रमण की विशिष्ट साधना भूमिकाएं) १४८, (१) प्रथम प्रतिमा एवं इसका स्वरूप १४६, दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठी और सातवीं प्रतिमाएं १५१, आगे की प्रतिमाएं : तप के साथ आसनजय १५१, आठवीं, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं प्रतिमा का स्वरूप १५१, बारहवीं प्रतिमा का स्वरूप १५२, सम्यगननुपालनता के तीन दुष्परिणाम १५२, सम्यगनुपालनता के तीन कल्याणकारी परिणाम १५२, प्रतिमायोग का महत्व १५३ । ४. जयणायोग साधना (मातृयोग) १५४–१६१ जयणायोग क्या है ? १५४, यतना का अभिप्राय १५४, अष्ट प्रवचन माता (तीन गुप्ति और पाँच समिति) १५५, गुप्तियाँ १५५, गुप्ति का लक्षण १५५, गुप्ति के भेद १५६, (१) मनोगुप्ति १५६, (२) वचनगुप्ति १५६, कायगुप्ति १५७, मनःसमिति १५७, वचन और काय समिति १५८, समिति १५८, समिति का लक्षण १५८, समिति के भेद १५८, (१) ईर्यासमिति १५८, इसका चार प्रकार से पालन १५८, (२) भाषा समिति १५६, इसका चार प्रकार से पालन १५६, (३) एषणा समिति १५६, इसका चार प्रकार से पालन १६०, (४) आदान-निक्षेपणा समिति १६०, इसके पालन के चार प्रकार १६०, (५) परिष्ठापनिका समिति १६०, स्थंडिल भूमि के चार प्रकार १६१, इस समिति के पालन के चार प्रकार १६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy