________________
( ५७ )
[२] अध्यात्म योग साधना
१. योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील [१] [गृहस्थयोगी के साधना सोपान]
श्रद्धा का महत्व १०३, सम्यग्दर्शन शब्द का अर्थ १०३, सम्यग्दर्शन : स्वरूप और महत्व १०४, सम्यग्दृष्टि के पाँच बाह्य विशिष्ट लक्षण १०५, सम्यग्दर्शन के पच्चीस मल-दोष १०६, त्यागवृत्ति १०७. भावशुद्धि १०८, सम्यक्ज्ञान १०८, सम्यक्ज्ञान के दोष १०८ सम्यक्चारित्र १०६, सम्यक्चारित्र के दो भेद १०६, आगार चारित्र ११०, आगार चारित्र के दो भेद ११०, मार्गानुसारी के पैंतीस गुण ११०, गृहस्थ का विशेष धर्मं ११२, व्रतों का चार प्रकार का अतिक्रमण ११२, अणुव्रत ११३, (१) स्थूल प्राणातिपात विरमण ११३, भावहिंसा और द्रव्यहिंसा ११३, चार प्रकार की हिंसा ११४, इस व्रत के पाँच अतिचार ११४, (२) स्थूल मृषावादविरमण ११५, पाँच प्रकार के महान असत्य ११५, इस व्रत के पांच अतिचार ११५, (३) स्थूल अदत्तादानविरमण ११५, पाँच अतिचार ११६, (४) स्वदार संतोषव्रत ११६, पाँच अतिचार ११६, (५) इच्छा परिमाणव्रत ११६, पाँच अतिचार ११७, तीन गुणव्रत ११७, (१) दिक्परिमाणव्रत ११७, पाँच अतिचार ११८, (२) उपभोग परिभोगपरिमाणव्रत ११८, उपभोग - परिभोग सम्बन्धी छब्बीस वस्तुएं ११८, चौदह नियम ११६, पन्द्रह कर्मादान ११६, पाँच अतिचार १२०, (३) अनर्थदण्डविरमणव्रत १२०, अनर्थदण्ड के चार रूप १२०, पाँच अतिचार १२१, शिक्षाव्रत १२१, ( १ ) सामायिक व्रत १२१, पाँच अतिचार १२२, चार प्रकार की शुद्धि १२२, (२) देशावकाशिक व्रत १२३, पाँच अतिचार १२३ (३) पौषधोपवासव्रत १२३, पौषध में चार प्रकार का त्याग १२३, पाँच अतिचार १२४, (४) अतिथि संविभागवत १२४, पाँच अतिचार १२४, अन्तिम समय की साधना : संलेखना १२५, गृहस्थ साधक की योग साधना १२५, गृहस्थयोगी की विशिष्ट साधना प्रतिमा १२६ ।
२. योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शोल [२] [गृहत्यागी श्रमण का योगाचार ]
Jain Education International
१०३ - ३१४
१०३ - १२७
श्रमण : सम्पूर्ण योग का आराधक १२८, साधु के मूल और उत्तर गुण १२८, साधु के सत्ताईस मूल गुण १२६, पाँच महाव्रत १३०, (१) अहिंसा महाव्रत : समत्वसाधना १३०, इस महाव्रत की पाँच भावनाएं १३१, (२) सत्य महाव्रत : योग का आधार १३२, पाँच भावनाएं १३२, (३) अचौर्य महाव्रत : अनासक्तियोग का प्रारम्भ १३३, पाँच भावनाएँ १३३, (४) ब्रह्मचर्य महाव्रत : चेतना का ऊर्ध्वारोहण १३४, पांच भावनाएँ
For Private & Personal Use Only
१२८ - १४०
www.jainelibrary.org