________________
४. योग के विविध रूप और साधना पद्धति
३०-५५
गीतोक्त योग ३०, समाधियोग ३१, शरणागति योग ३१, राजयोग ३२, हठयोग ३२, नाथयोग ३३, भक्तियोग ३४, ज्ञानयोग ३५, कर्मयोग ३६, लययोग ३६, अस्पर्शयोग ३७, सिद्धयोग ३७, तन्त्रयोग ३८, वामकौल तन्त्रयोग (वाममार्ग) ३८, तारकयोग ४१, ऋजुयोग ४१, जपयोग ४१, जपयोग के प्रकार ४२, मंत्रयोग ४४, मन्त्रयोग के १६ अंग ४४, ध्यानयोग ४७, ध्यानयोग के प्रकार ४७, भेद ध्यानयोग के उत्तरभेद ४७, अभेद ध्यान ४७, सुरत शब्दयोग ४८, अरविन्द का पूर्णयोग ४८, योगमार्ग : पिपीलिका मार्ग और विहंगम मार्ग ४६, बौद्धयोग ५०, योग-वियोगअयोग ५१, भारतीयेतर दर्शनों में योग ५२, पाश्चात्य योग-मेस्मेरिज्म तथा हिप्नोटिज्म ५३ ।
५. जैन योग का स्वरूप
५६-६२ योग का लक्षण ५६, मन की अचंचलता आवश्यक ६०, मन के प्रकार ६१, चित्त की भूमिकाएँ ६१, योग संग्रह ६२, गुरु का महत्त्व ६४, योगाधिकारी के भेद ६४, (१) चरमावर्ती साधक ६५, (२) अचरमावर्ती साधक ६५, आत्मविकास के क्रम में जीव की स्थितियाँ ६५, (१) अपुनबन्धक ६६, (२) सम्यग्दृष्टि ६६, (३) देशविरति ६६, (४) सर्वविरति ६६, चित्तशुद्धि के प्रकार ६७, योग के अनुष्ठान ६८, योग के पाँच भेद ६६, अन्य अपेक्षा से योग के तीन प्रकार ७०, योगदृष्टियाँ ७१, (१) मित्रादृष्टि ७१, (२) तारादृष्टि ७२, (३) बलाद्दष्टि ७२, (४) दीप्रादृष्टि ७२, (५) स्थिरादृष्टि ७३, भाव (आध्यात्मिक) प्राणायाम ७३, स्थिरादृष्टि के दो प्रकार ७४, (६) कान्तादृष्टि ७४, (७) प्रभादृष्टि ७५, (८) परादृष्टि ७६, योगियों के भेद ७६, (१) कुलयोगी ७७, (२) गोत्रयोगी ७७, (३) प्रवृत्तचक्रयोगी ७७, प्रवृत्तचक्रयोगी के गुण ७८, तीन योगावंचक ७८, (४) निष्पन्न योगी ७६, जैन योग और कुण्डलिनी ७१, आध्यात्मिक दृष्टि से जैन योग के भेद ८२, (१) आध्यात्मयोग ८२, (२) भावनायोग ८४, बारह वैराग्य भावनाएँ ८५, (३) ध्यानयोग ८६, (४) समतायोग ८७, (५) वृत्तिसंक्षय योग ८६, योग का महत्व ६१।
६. योगजन्य लब्धियाँ
६३-१०२. वैदिक योग में लब्धियाँ ६३, योगदर्शन सम्मत लब्धियाँ ६४, बौद्धदर्शन में लब्धियाँ ९५, जैनयोग और लब्धियाँ ६६, प्रवचनसारोद्धार में निरूपित २८ लब्धियों का परिचय ९७, लब्धियों के तीन वर्ग १०० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org