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अपूर्व भेट
योग आत्म-साक्षात्कार की सर्वोत्तम विद्या है। जीवन को माँजने और संवारने की कला है। यह आधयात्मिक साधना का मेरुदण्ड है जिसके बिना भौतिक विज्ञान की प्रगति अधूरी है । भौतिक विज्ञान जिन प्रश्नों के सम्बन्धों में मौन है, योग उन सभी जटिल प्रश्नों का समाधान करता है। वह मानव को बहिमुखी से अन्तमुखी बनाता है, ममता के स्थान पर समता समुत्पन्न करता है, भोग के स्थान पर त्याग की भावना उबुद्ध करता है, वह आत्मा से परमात्मा, नर से नारायण बनाता है, अन्धकार से प्रकाश की ओर तथा असत् से सत् की ओर ले जाता हैं।
योग स्वस्थ जीवन जीने की पद्धति है। वह तन और मन पर अनुशासन करता है जिससे शारीरिक और मानसिक तनाव नष्ट होते हैं और जीवन में सद्विचारों के सुगन्धित सुमन महकने लगते हैं । परम् आल्हाद का विष है कि स्वर्गीय आगम रत्नाकर आचार्य प्रवर आत्मारामजी महाराज का योग विषयक एक महान ग्रन्थ प्रकाश में आ रहा है । सम्पादकद्वय ने अपनी प्रकृष्ट प्रतिभा से ग्रन्थ का सम्पादन कर भारती भण्डार में अपूर्व भेंट दी है, तदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। मदनगंज, किशनगढ़
--उपाध्याय पुष्कर मुनि
(अध्यात्मयोगी संत)
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