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________________ प्राण-शक्ति को अद्भुत क्षमता और शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता ३६१ वादीभसिंह सरि कूष्ट से ग्रसित थे। एक श्रावक उनका बहत भक्त था, उस श्रावक का राज-दरबार में भी काफी सम्मान था। कुछ विद्वेषियों ने राजा से कहा कि 'इस श्रावक के गुरु तो कोढ़ी हैं' और मुनिश्री की काफी निन्दा की। इस पर श्रावक उत्तेजित हो गया, उसने कह दिया-'मेरे गुरु कोढ़ी नहीं हैं।' राजा ने इस विवाद को शान्त करने के लिए स्वयं मुनिश्री के दर्शन करने का निर्णय लिया। यह सम्पूर्ण घटना श्रावक ने मुनि को कह सुनाई। दूसरे दिन प्रातःकाल जब राजा ने मुनिश्री के दर्शन किये तो उनके शरीर पर कोढ़ का चिह्न भी नहीं था। ऐसी एक घटना विक्रम की अठारहवीं शताब्दी की है। मालेर कोटला में तपावालों के स्थानक में आचार्य रतिराम जी महाराज ठहरे हए थे। उनको कोढ़ की व्याधि हो गई, विद्वेषियों ने नबाव से शिकायत की; लेकिन जब नवाब ने स्वयं आकर देखा तो वहाँ न बदबू थी और न आचार्यश्री के शरीर पर कोढ़ ही था। ऐसी घटनाओं को जनसाधारण चमत्कार समझ बैठते हैं; किन्तु तपस्या और योग में चमत्कार शब्द है ही नहीं; यह सब प्राण-शक्ति की की अद्भुत क्षमता है। उच्चकोटि के साधक कभी चमत्कार दिखाते भी नहीं। यह बात दूसरी है कि प्राण और प्राणायाम से प्राप्त योगी की अद्भुत क्षमता को जन-साधारण नहीं समझ पाते और ऐसी घटनाओं को चमत्कार मान लेते हैं। मानव साधारणतया तीन शक्तियों से परिचित रहता है-(१) मन की शक्ति-मनोबल; (२) वचन की शक्ति-वचनबल और (२) काय की शक्ति-कायबल; किन्तु इन तीनों शक्तियों से अधिक बलशाली और प्रभावी शक्ति है, उससे साधारणतः मानव' अनभिज्ञ-सा ही रहता है, वह शक्ति है-प्राण-शक्ति-प्राणों की शक्ति-प्राण-बल । प्राणशक्ति, जब प्राणायाम को साधना से उत्तेजित एवं अनुप्राणित हो जाती है, दूसरे शब्दों में इसकी क्षमता विकसित हो जाती है तो यह मानव-शरीर अर्थात् साधक-शरीर के रेटिक्यूलर फॉर्मेशन को ही बदल देती है। यह रेटिक्यूलर फॉर्मेशन मस्तिष्क की अत्यन्त गहराई में ऐसे संस्थान हैं, जिनमें अपरिमित शक्ति भरी होती है। योगी साधक प्राणायाम की साधना से इस रेटिक्यूलर फॉर्मेशन को सक्रिय कर लेता है, जागृत कर देता है। फलस्वरूप उसमें अद्भुत क्षमताएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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