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________________ ३६० जैन योग : सिद्धान्त और साधना दीर्घश्वास लेने से एड्रीनल ग्रन्थि सक्रिय हो जाती है, उससे अधिक हारमोन निकलने लगते हैं और भय की भावना पलायन कर आती है। तनावों से मुक्ति पाने का सर्वश्रेष्ठ साधन है-समत्व-योग । अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियों में सम रहना ही समता-योग है। समत्वयोगी साधक को तनाव सताते ही नहीं अथवा यों कहें कि तनाव उसे स्पर्श भी नहीं करते तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। शवासन और शिथिलीकरण.मुद्रा से भो तनाव-विसर्जन हो आता है। प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और कायोत्सर्ग से मानसिक एवं शारीरिक तनाव और थकान सहज ही दूर हो जाते हैं। ये उपचार स्थायी हैं। योगी इन्हीं उपचारों से अपने को तनाव और तनावजन्य सभी व्याधियों से मुक्त रखता है। साथ ही उसकी प्राण-शक्ति भी बलवती बनती है। शारीरिक व्याधियाँ जहाँ तक शारीरिक रोगों का सम्बन्ध है, प्राण-शक्ति और प्राणवायु की साधना से सभी व्याधियाँ शान्त हो जाती हैं। उदर की व्याधि, कफ, शरीर की पुष्टि, सन्निपात ज्वर आदि अनेक रोग शान्त हो जाते हैं, घाव जल्दी भर जाते हैं, टूटी हुई हड्डी भी जुड़ जाती है, जठराग्नि तेज होती है, गर्मी-सर्दी आदि का प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात् शीत-ताप से होने वाले रोग नहीं होते, दर्द-पीड़ा आदि का उपशमन हो जाता है, शरीर सभी प्रकार से नीरोग और स्वस्थ रहता है तथा बल, कान्ति आदि की वृद्धि होती है।' शारीरिक व्याधि न होने से साधक मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है, उसको व्याधिजन्य तनाव नहीं हो पाता। जैन शास्त्रों में उल्लेख आता है कि मुनि सनत कुमार कुष्ट की व्याधि से पीड़ित हो गये थे, उनके रोग-निवारण के लिए स्वर्ग से एक देव वैद्य का रूप रखकर आया और उनके रोग का उपचार करने की इच्छा प्रगट की। इस पर मुनिश्री ने अपनी हाथ की अंगुली पर थूक कर रोग मिटाकर दिखा दिया। यह घटना तो पौराणिक है; किन्तु एक घटना ऐतिहासिक काल की भी अधिक प्रसिद्ध है। विक्रम की लगभग १३वीं शताब्दी की बात है । मुनि १ योगशास्त्र, प्रकाश ५, श्लोक १०-२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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