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________________ ( ३७ ) ३. ध्यानयोग-अब तीसरे ध्यानयोग का कुछ स्वरूप वर्णन किया जाता है : (क) स्थिर दीपशिखा के समान निश्चल और अन्य विषय के संचार से रहित केवल एक ही विषय का धारावाही प्रशस्त सूक्ष्म बोध जिसमें हो उसको ध्यान कहते हैं।' (ख) अन्तमुहर्त पर्यन्त एक ही विषय पर चित्त की सर्वथा एकाग्रता अर्थात् ध्येय विषय में एकाकारवृत्ति का प्रवाहित होना, उसका नाम ध्यान है। शीलांकाचार्य ने 'ज्झाणजोगं समाहट्ट' इस गाथा की व्याख्या करते हुए चित्तनिरोधलक्षण धर्मध्यानादि में मन, वचन, काया के विशिष्ट व्यापार को ही ध्यानयोग कहा है। (ध्यानम् -चित्तनिरोधलक्षणं धर्मध्यानादिकं तत्र योगो विशिष्टमनोवाक्कायव्यापारस्तं ध्यानयोगम्) । इस साधनयोग में ध्येयवस्तुविषयक एकाग्रता इतनी बढ़ जाती है कि साधकको उस समय ध्येय के अतिरिक्त अन्य का आंशिक विचार भी उद्भव नहीं होता । यह ध्यानरूप योगाग्नि जिस आत्मा में प्रज्वलित होती है उसका कर्मरूप मल (जो आत्मा के साथ चिरकाल से चिपका हुआ है) भस्म हो जाता है तथा उसके प्रकाश से रागादि अन्धकार दूर हो जाता है; चित्त सर्वथा निर्मल हो जाता है और मोक्षमन्दिर का द्वार सामने दिखाई देने लगता है । अधिक क्या कहें ध्यानयोग, यह आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप में प्रतिष्ठित करने का प्रबलतम साधन है । तथा यात्मस्वातन्त्र्य, परिणामों की निश्चलता और जन्मान्तर के आरम्भक कर्मों का विच्छेद, ये तीन ध्यानयोग के सुचारु फल हैं। ध्यान के भेदों और उनके स्वरूपों का, वर्णन अन्यत्र किया जावेगा । १. 'निवायसरणप्पदीपज्झाणमिव निप्पकंपे'। (प्रश्नव्या० संवद्वार ५) २. यह समग्र गाथा इस प्रकार है'ज्झाणजोगं समाहटु, कायं विउसेज्ज सव्वसो । तितिक्खं परमं नच्चा, आमोक्खाए परिवएज्जास' ॥(सूयगडंग अ०८, गा०२६) छा०-ध्यानयोगं समाहृत्य, कायं व्युत्सृजेत् सर्वशः ।। तितिक्षां परमां ज्ञात्वा, आमोक्षाय परिव्रजेत् ॥ ३. 'सज्झायसुज्झाणरयस्स ताइणो, अपावभावस्स तवे रयस्स । विसुज्झइ जंसि मलं पुरे कडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा' । (दशवकालिक अध्य० ८ गा० ६३), छा०-स्वाध्यायसुध्यानरतस्य त्रायिणः, अपापभावस्य तपसि रतस्य । _ विशुध्यत्यस्य मलं पुराकृतं, समीरितं रूपमलमिव ज्योतिषा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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