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३४६ जैन योग : सिद्धान्त और साधना वाला रूपक है-एक जामुन के वृक्ष और छह व्यक्तियों की मित्र मंडली
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छह पुरुषों की एक मित्र मंडली थी। उनके मन में विचार आया कि जामुन का मौसम है, समीप के ही जंगल में जामुन के कई विशाल वृक्ष हैं। वहाँ जाकर भरपेट जामुन खायें।
___ जहाँ मित्रता और विचार-एक्यता होती है, वहाँ मन के विचारों को कार्य रूप में परिणत करने में समय नहीं लगता। छहों मित्र वन में पहुँचे गये और जामुनों से लदे एक विशाल वृक्ष के पास जा खड़े हुए।
जामून के वृक्ष को देखकर पहला मित्र बोला-यह वृक्ष जामुनों से लदा है और फल भी ऐसे पके और स्वादिष्ट दिखाई दे रहे हैं कि मुंह में पानी आ रहा है। इस पर चढ़कर फल तोड़ने से तो यही अच्छा रहेगा कि कुल्हाड़ी द्वारा इस वृक्ष को मूल से ही काट दिया जाय । यह वृक्ष गिर पड़ेगा और हम लोग आनन्द से जामुन खायेंगे।
दूसरे मित्र ने प्रतिवाद किया-पूरे वृक्ष को मूल से ही काटने से क्या लाभ ? बड़ी-बड़ी शाखाओं को ही काट लें । उन्हीं से अपना काम चल जायेगा।
तीसरे मित्र ने अपना विचार प्रगट किया-बड़ी शाखाओं को भी काटना व्यर्थ है। छोटी-छोटी शाखाओं को काटने से ही हमारा काम चल सकता है।
चौथे मित्र ने अपनी राय दी-छोटी शाखाओं को भी काटने का परिश्रम व्यर्थ है। फल तो गुच्छों में ही लगे हैं। हमें फल ही तो खाने हैं । बस, गुच्छों को तोड़ लें।
पांचवाँ मित्र कहने लगा-गुच्छों में तो पके-कच्चे दोनों प्रकार के फल हैं । हमें सिर्फ पके फल ही खाने हैं, अतः गुच्छों को न तोड़कर सिर्फ पके फल हो तोड़ने चाहिए।
छठे मित्र ने अपनी संतोष वत्ति व्यक्त की-भाई ! पके फल तोड़ने का श्रम भी क्यों किया जाय और क्यों इस वृक्ष को कष्ट दिया जाय ? यहाँ
१ आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, पृ० २४५
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