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लेश्वा-याम साधना
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स्वयं ही टूटे हुए हजारों फल जमीन में पड़े हुए हैं । ये पके भी हैं और मीठे भी। हम इन्हें ही खाकर अपना पेट भर सकते हैं।
इन छहों मित्रों के परिणाम उत्तरोत्तर शुभ हैं, उनके परिणामों में उत्तरोत्तर संक्लेश कम है । पहला मित्र कृष्णलेश्या वाला, दूसरा नीललेश्या वाला, तीसरा कापोतलेश्या वाला, चौथा तेजोलेश्या वाला, पाँचवाँ पद्मलेश्या वाला और छठा शुक्ललेश्या वाला है।
जिस प्रकार इन छहों मित्रों के आत्म-परिणाम उत्तरोत्तर शभ हैं, उसी प्रकार लेश्या-ध्यान का साधक अपने संक्लिष्ट परिणामों को, भावधारा को कषायों के आवेग-संवेग को कम करता हुआ, इनका परिमार्जन करता हुआ अपनी भावधारा को शुद्ध बनाता है, अपने आभामंडल को स्वच्छ और निर्मल करता है तथा आध्यात्मिक, मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थता और शांति प्राप्त करता है।
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