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________________ ३४४ जन योग : सिद्धान्त और साधना मस्तिष्क शक्तिशाली तथा सक्रिय बनते हैं। उसकी मानसिक शक्तियाँ विकसित होती है। पद्मलेश्या की ध्यान-साधना से साधक का दर्शन केन्द्र तथा आनन्द केन्द्र (विशद्धि चक्र) अनुप्राणित एवं जागृत हो जाते हैं, परिणामस्वरूप साधक को अनिर्वचनीय आन्तरिक प्रसन्नता एवं आनन्द की उपलब्धि होती है।' शुक्ललेश्या ध्यान और श्वेत वर्ण शुक्ललेश्या वाले पुरुष का चित्त शांत होता है । मन-वचन काया पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो जाता है तथा वह जितेन्द्रिय हो जाता है । वस्तुतः श्वेत रंग समाधि का प्रतीक है । जिस समय साधक श्वेत रंग का ध्यान करता है तो उसकी अन्तश्चेतना में से कषायों, विषय-विकारों, परपदार्थों के प्रति आसक्ति इन सब का नाश हो जाता है। इस रंग के ध्यान १ तेजोलेश्या (लाल रंग) की साधना के दौरान जब साधक अपने परिणामों को भावधारा को उत्तरोत्तर विशुद्ध बनाता हुआ पद्मलेश्या (पीले रंग) की साधना भूमिका में पहुंचता है तो इस तरतमता के मध्यान्तर में उसके दृष्टिपटल एवं मानस पटल पर नारंगी (orange) रंग उभरता है। शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से साधक के लिए यह नारंगी रंग भी महत्त्वपूर्ण है। इस रंग से साधक को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। वस्तुतः नारंगी रग लाल और पीले रंग का मिश्रण है। इसमें लाल और पीले दोनों रंग समान मात्रा में होते है । इससे साधक की संकल्प-शक्ति दृढ़ होती है तथा उसे अनेक भौतिक लब्धियों की प्राप्ति होती है । साधक की थाइराइड ग्रन्थि (Thyroid Gland) सक्रिय होती है, अतः बुढ़ापे के लक्षण प्रगट नहीं होते। तीर्थंकर जो सदा युवा रहते हैं, उसका रहस्य इसी ग्रन्थि की सक्रियता में निहित है। योगी भी बहुत अधिक आयु में ही बूढ़े होते हैं । इससे योगी की इथरिक बॉडी (Etheric Body) शक्तिशाली बनती है। उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करने की क्षमता प्राप्त हो जाती है। पैनक्रियास ग्रन्थि (Pancreas gland) से, इस रंग द्वारा शक्ति का प्रवाह जारी हो जाता है, अतः साधक में वात्सल्य (विश्व कल्याण भावना), आन्तरिक प्रसन्नता, भावनाबों की सजीवता तथा योग-क्षेम की भावना विकसित हो जाती है । २ उत्तराध्ययन ३४/३१-३२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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