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लेश्या-ध्यान साधना
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हो जाती हैं, वह भौतिक जगत में होने वाले सूक्ष्य प्रकम्पनों को भी पकड़ने में असमर्थ हो जाती हैं।
तेजोलेश्या के ध्यान तथा उसमें लाल रंग के संयोग से साधक के शरीर का सेरेब्रो-स्पाइनल द्रव पदार्थ (liquid matter of Cerebro-spinal) उत्प्रेरित हो जाता है। परिणामस्वरूप मस्तिष्क का दायाँ भाग विशेष रूप से सक्रिय हो जाता है । अन्तर्ज्ञान और अतीन्द्रिय ज्ञान के द्वार खुलने लगते हैं। साधक की वृत्तियों में अभूतपूर्व परिवर्तन आ जाता है।
साधक के आभामण्डल से विकीणित होने वाली ये लाल रंग की किरणें तापोत्पादक और शरीर में शक्ति संचार करने वाली होती हैं। ये जिगर (lever) और मांसपेशियों के लिए विशेष लाभप्रद होती हैं। ये क्षार द्रव्यों (alkalines) का आयोनाइजेशन (ionisation) करती हैं और ये आयोन्स (ions) विद्य त चुम्बकीय शक्ति (electro-magnetic energy) के वाहक होते हैं। सीधे शब्दों में साधक के मन के भावों और शरीर के परमाणुओं में एक ऐसा आकर्षण उत्पन्न हो जाता है कि प्रत्येक प्राणी उसकी ओर आकर्षित तथा उससे प्रभावित होने लगता है।
पद्मलेश्या ध्यान और पीत (सुनहरा) वर्ण पद्मलेश्या वाले साधक के जीवन में क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों की अल्पता होती है। उसका चित्त प्रशान्त होता है । वह जितेन्द्रिय और अल्पभाषी होता है अतः वह ध्यान साधना सहज रूप से कर सकता है।
योग की दृष्टि से पद्मलेश्या वाले साधक का आभामण्डल पीले (स्वर्ण कान्ति मिश्रित चमकदार सुनहरे पीले) रंग का होता है। पीले रंग में किसी प्रकार की उत्त जना नहीं होती अतः यह रंग ज्ञान और ध्यान का प्रतीक है।
आधुनिक मनोवैज्ञानिक और शरीर-वैज्ञानिक दृष्टि से पीले रंग में धन चुम्बकीय विद्यत (Positive Magnetic Electric) होती है। इसीलिए यह शरीर के मृत सैलों (cells) को सजीव बनाकर उन्हें सक्रिय करता है। यह क्रियावाही नाड़ियों और मांसपेशियों को भी सक्रिय और शक्तिशाली बनाता है । धन चुम्बकीय विद्युत के प्रभाव से साधक का नाड़ीमंडल एवं
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उत्तराध्ययन ३४/२६-३०
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