SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ जन योग : सिद्धान्त और साधना तनावों, शारीरिक रोगों तथा विकृत हारमोन्स (Harmones) की शुद्धि होती है। तेजोलेश्या ध्यान और लाल (अरुण) रंग तेजोलेश्या वाले व्यक्ति का स्वभाव नम्र और अचपल होता है । वह जितेन्द्रिय, तपस्वी, पापभीरु और मुक्ति की अन्वेषणा करने वाला होता है ।' उसमें महत्त्वाकांक्षा नहीं रहती तथा स्वार्थसिद्धि की भावना भी अत्यल्प रह जाती है। योग की दृष्टि से तेजोलेश्या वाले व्यक्ति के आभामण्डल में से कालिमा (काला, नीला, कापोती तथा श्माम वर्ष के sphere में आने वाले बंगनी, जामुनी आदि सभी रंगों की आभा-प्रतिच्छाया) निःशेष हो जाती है और उसके आभामण्डल का रंग अरुण (बाल सूर्य के समान लाल) रंग हो जाता है। लाल रंग भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से क्रान्तिउक्रान्ति का प्रतीक है । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह वर्ण स्वास्थ्यप्रद और प्रतिरोधात्मक शक्ति से सम्पन्न होता है। शारीरिक दृष्टि से यह रोगों का विनाशक-स्वास्थ्यप्रद, तथा मानसिक दृष्टि से यह दुर्भावनाओं का अन्त करने वाला एवं आध्यात्मिक दृष्टि से यह अधर्म से धर्म की ओर उन्मुख करने वाला है। साधक जिस समय तेजोलेश्या का, अरुण रंग के संयोगपूर्वक ध्यान करता है तो उसका आभामण्डल अरुणिम होकर अरुणाभ तरंगों का विकीरण करने लगता है । उस विकीरण के प्रभाव से उसकी मानसिक दुर्भावनाएं तो नष्ट होती ही हैं। साथ ही उसका नाड़ी मण्डल और रक्त सक्रिय बनता है। परिणामस्वरूप उसकी ज्ञानवाही नाड़ियाँ और ज्ञानतन्तु भी सक्रिय बन जाते हैं। इसके फलस्वरूप उसकी अन्तश्चेतना में ज्ञान के विविध आयाम खुलने लगते हैं । साधक की पाँचों इन्द्रियाँ विशेष रूप से कार्यक्षम और सक्षम १ उत्तराध्ययन ३४/२७-२८ २ जैन आगमों में कृष्ण, नील, कापोत- इन तीनों लेश्याओं को अधर्म लेश्या कहा गया है तथा इनका फल दुर्गति बताया गया है। वस्तुतः लेश्याध्यान की साधना (आत्मिक उन्नति की साधना की अपेक्षा से) इस तेजोलेश्या से ही प्रारम्भ होती है। यहीं से साधक के जीवन में धर्म का प्रवेश होता है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy