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लेश्या-ध्यान साधना
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आध्यात्मिक दृष्टि से इस रंग की साधना द्वारा साधक में सत्य के प्रति झुकाव, गुरु के प्रति विनय, प्रामाणिकता, प्रातिभ ज्ञान तथा आन्तरिक ज्ञान की उत्पत्ति के लक्षण प्रगट होने लगते हैं।
योगमार्ग का साधक, नोललेश्या अथवा नीले रंग की साधना भी परिमार्जन की दृष्टि से करता है। वह साधना और ध्यान के बल पर गहरे नीले रंग को हलका करता है, उसका गहरापन कम करता है और ध्यान के प्रयोग से गहरा नीला रंग, कापोती रंग अथवा हल्के नीले रंग में परिवर्तित हो जाता है।
कापोत लेश्याध्यान और हल्के नीले रंग की साधना कापोत लेश्या वाला मनुष्य वक्र स्वभावी होता है। उसकी वाणी और आचरण में कपट होता है। वह अपने दुगुणों को छिपाकर सद्गुणों को प्रकट करता है। वह कभी-कभी दुष्टवचन भी बोलता है, फिर भी उसकी भावधारा नीललेश्या वाले पुरुष की भावना की अपेक्षा शुभ होती है।
___ आधुनिक विज्ञान ने कापोती रंग के स्थान पर हरा रंग माना है । हरा रंग शान्तिदायक है। यह आज्ञा चक्र को बलशाली बनाता है। आज्ञा चक्र को शरीर विज्ञान में Pitutary gland कहा जाता है। अतः हरे रंग को दृष्टिपटल एवं मानस पटल पर लाने से, साधना करने से साधक को मानसिक और शारीरिक शान्ति प्राप्त होती है। उसका रक्तचाप और रक्तवाहिनी नाड़ियों (blood artileries) का तनाव उपशांत होता है। फलतः उसकी मानसिक और शारीरिक थकान दूर होकर स्फूति का संचार होता है। हरे रंग की साधना से साधक में जीवनी शक्ति का निर्माण होता है, यानी उसके शरीर की मांसपेशियों और ऊतकों (muscles and tissues) का निर्माण होता है तथा पुरानी जर्जरित मांसपेशियों और ऊतकों में नवजोवन का संचार होता है।
साधक के भावना क्षेत्र (आभामण्डल) पर हरे रंग की साधना का बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ता है। उसके अन्तर्जगत में जो काम, क्रोध, लोभ, हिंसा, करता आदि दुर्भावनाओं की धारा बह रही होती है, वह उपशान्त हो जाती है। दूसरे शब्दों में कषायों (आध्यात्मिक दोषों), मानसिक
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उत्तराध्ययन ३४/२५-२६
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