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________________ नेश्या - ध्यान साधना ३३५ इस प्रकार प्राण शरीर विद्युत रूप में मानव के स्थूल शरीर से २३३ फुट बाहर तक प्रवाहित रहता है । इसी को आभामंडल कहा जाता है । मनुष्य ही नहीं, यह आभामंडल' प्राणी मात्र के स्थूल शरीर के १ आभामंडल ( aura ) और प्रभामंडल ( Halo) में बहुत अन्तर है । आभामंडल तो प्राणशरीर से विकीर्ण होने वाली विद्युत् तरंगों से बनता है । इसमें रंग भी होते हैं और वे रंग भावनाओं तथा आवेग संवेग के अनुसार बदलते भी रहते हैं । यह आभामंडल संपूर्ण शरीर के आकार का तथा मानव शरीर से २३३ फुट तक बाहर निःसृत होता रहता है । मानव ही नहीं, प्राणीमात्र, यहाँ तक वृक्षों ओर फूल-पत्तियों में भी आभामंडल होता है । किन्तु प्रभामंडल केवल पवित्रात्माओं में ही बनता है । यह सिर्फ सिर के पीछे की ओर गोलाकार रूप में होता है । इसका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला होता है तथा यह वर्ण स्थायी होता है, कभी बदलता नहीं । साथ ही यह वर्ण इतना स्पष्ट होता है कि चर्मचक्षुओं से भी देखा जा सकता है। भगवान महावीर, राम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा आदि के सिरों के पीछे जो प्रकाशवलय तस्वीरों आदि में दिखाया जाता है, वह प्रभामंडल ही है, जिसे साधारण भाषा में 'भामंडल' भी बोल दिया जाता है । प्रभामण्डल की उत्पत्ति उन्हीं पवित्रात्माओं के होती है जो आध्यात्मिक उन्नति की चरम स्थिति पर पहुँच जाते हैं। योग की दृष्टि से जिस योगी का - अन्तिम यानी सहस्रार चक्र अनुप्राणित हो जाता है उसी के यह प्रभामण्डल बनता है । आत्मिक तेज दिखाई देने प्रभामण्डल का निर्माण योगी साधक आज्ञा चक्र जागृत करने के उपरान्त अपनी शक्ति का प्रवाह जब और ऊँचा चढ़ाता है तब वह शक्ति ऊर्ध्वमुखी गति से मनश्चक्र को जाग्रत करती है और आगे बढ़कर सोमचक्र को अनुप्राणित करती है । इस सोमचक्र के जागृत होते ही साधक को कोटि सूर्यसम लगता है । यह आसाधारण प्रकाश ही पुंजीभूत होकर करता है और जब साधक का ब्रह्मरन्ध्र स्थित सहस्रार चक्र अनुप्राणित हो जाता है तो वह अति आनन्ददायक और प्रभावशाली प्रकाश सहस्र - सहस्र रश्मियों के रूप में बाहर की ओर बह निकलता है । सहस्रार चक्र ( कमल) में हजार दल (पंखुड़ियाँ) हैं और इन सभी से प्रकाश प्रस्फुटित होता है । यही प्रकाश योगी के सिर के पीछे वृत्ताकार रूप में दिखाई देता है, जिसे प्रभामण्डल कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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