________________
प्राण-शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ
प्राणायाम शारीरिक दृष्टि से रोग निवारक और रोग प्रतिरोधक है, अतः यह शरीर को नीरोग रखता है ।
शरीर की नीरोगता के साथ-साथ मनःस्वास्थ्य और मनः समाधि में भी सहयोगी बनता है ।
इस प्रकार साधक प्राण-साधना में क्रमशः आसन-शुद्धि, नाड़ी - शुद्धि और पवन-साधना करता है, प्राणों यानी सूक्ष्म शरीर को तीव्र करता है और अनेक विशिष्ट शक्तियों की उपलब्धि करता है ।
किन्तु जब तक ये उपलब्धियाँ बहिर्मुखी रहती हैं, अन्तमुखी नहीं हो पातीं तब तक ये आध्यात्मिक उपलब्धियाँ, अध्यात्म - साधना नहीं बन पातीं । फिर भी इनसे साधक को अनेक प्रकार के मानसिक एवं शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं ।
प्रारम्भ में जो दश प्राण बताये गये हैं, वे प्राणायाम की साधना से बलशाली बनते हैं, उनको कार्यक्षमता बढ़ती है, इन्द्रिय और मन सूक्ष्मग्राही ते हैं । यही प्राण साधना की फलश्रुति है |
Jain Education International
३३१
१ विभिन्न प्रकार के रोगनिवारण और उपलब्धियों के लिए द्रष्टव्य हेमचन्द्राचायंकृत योगशास्त्र, पाँचवा प्रकाश और शुभचन्द्राचार्य प्रणीत ज्ञानार्णव ।
For Private & Personal Use Only
9
www.jainelibrary.org