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३३० जैन योग : सिद्धान्त और साधना
इन आत्मिक एवं यौगिक उपलब्धियों के अतिरिक्त प्राणायाम का साधक के शरीर पर भी बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ता है ।
प्राणायाम का शरीर पर प्रभाव
आधुनिक शरीर - विज्ञान के अनुसार मानव शरीर के अन्दर काम करने वाले प्रधान अंग समूह हैं - ( १ ) स्नायु जाल (Nervous system) (२) ग्रन्थि समूह (glandular system), (३) श्वासोपयोगी प्रणाली ( respiratory system), (४) रक्तवाहिनी प्रणाली ( circulatory system), (५) पाचन संस्थान ( digestive system) ।
प्राणायाम से इन सभी अंग समूहों को लाभ होता है । प्राणायाम में पूरक के समय जो लम्बी गहरी साँस ली जाती है, उससे रक्त अधिक शुद्ध होता है और शुद्ध रक्त सम्पूर्ण शरीर में फैलकर स्फूर्ति और चुस्ती देता है । मस्तिष्क से लेकर पैरों तक के सभी अंग बलशाली बनते हैं ।
सामान्य साँस लेने में फेफड़ों के कुछ ही अंश क्रियाशील होते हैं और शेष अंश निष्क्रिय पड़े रहते हैं । किन्तु प्राणायाम (गहरी साँस लेने) से फेफड़ों के सभी अंग सक्रिय हो जाते हैं । परिणामस्वरूप राजयक्ष्मा ( तपैदिक T. B. ) नहीं हो पाती और यदि प्रारम्भिक अवस्था ( primary stage) में हो तो ठीक भी हो जाती है । इसी प्रकार फेफड़ों सम्बन्धी अन्य रोग जैसे plurisy आदि भी ठीक हो जाते हैं ।
शुद्ध रक्त मिलने से ग्रन्थि समूह ठीक तरह से काम करने लगेगा, शीघ्र ही बुढ़ापे के लक्षण प्रगट नहीं होंगे ( क्योंकि बुढ़ापा Thyroid ग्रन्थि की निष्क्रियता से आता है और प्राणायाम से यह ग्रन्थि सक्रिय बनी रहती है), शरीर फुर्तीला बना रहेगा और कार्यक्षमता भी बढ़ेगी ।
व्यायाम पाचन संस्थान के लिए भी बहुत सहायक है । रेचक, पूरक और कुम्भक - तीनों दशाओं में उदर की नाड़ियाँ सिकुड़ती और फैलती है । इस प्रकार उनका व्यायाम हो जाता है और वे स्वस्थ बनी रहती हैं ।
इस प्रकार प्राणायाम से शरीर स्वस्थ बना रहता है । मांसपेशियाँ (muscles) लचोली और सुदृढ़ बनी रहती हैं, गुर्दे (Kidney), यकृत (liver), प्लीहा आदि सभी अंग सुचारु रूप से काम करते हैं, फेफड़ों में लचीलापन बना रहता है और श्वास- कास आदि रोग नहीं हो पाते ।
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